Monday, October 15, 2012

तुम मैं और वह कविता - डॉ नूतन गैरोला



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तुम्हें याद है क्या कि तुम किसी अनजान की कविता सुना रहे थे उस रात …..शायद तुमको तो  मालूम था तब कि कविता किसकी थी …... मैं तो  बस सुन रही थी …...सुनना मेरा काम था और सुनाना तुम्हारा  ….. तुम  तो कविता में खोये थे और मैं? .. . मैं  तुम  में ..

तुम  बोले जा रहे थे --

कुछ विकल जगारों की लाली

कुछ अंजन  की रेखा काली

उषा के अरुण झरोखे में

जैसे हो काली रात बसी

दो नयनों में बरसात बसी  ..

बिखरी बिखरी रूखी पलकें

भीगी भीगी भारी पलकें

प्राणों में कोई पीर बसी

मन में है कोई बात बसी

दो नयनों में बरसात बसी ...

         तुम  सुना रहे थे ..उधर बाहर बारिश का शोर था और इधर अंदर मेरी आँखों में भी बरसात का जोर था …. तुम  इन सबसे अनभिज्ञ पूरे मनोयोग से किताब पर मन लगाए हुए थे और यह  बेदर्द कविता ज्यूं  मेरे ही हाल को बयां कर रही थी …...यही वह कविता थी न जिसने तुमको  नजदीक हो कर भी मुझसे दूर कर दिया था| साथ रह कर भी हम तुम कहाँ साथ थे …. तुम कविता में डूबे मुझसे बेखबर अपने पात्रों को गढ़ते, लिखते, पढ़ते और मैं तुम में खोयी खुद को तुम में ढूंढती अतृप्त सी ….. क्या तुम्हें मालूम है कि आज भी तुम यह कविता मेरे लिए गा सकते हो क्योंकि कुछ मेरा हाल ऐसा ही हो कर रह गया .…. और आज मैं भी गुनगुना रही हूँ एक कविता की पंक्तियाँ

अब छूटता नहीं छुडाये

रंग गया ह्रदय है ऐसा

आंसूं से धुला निखरता

यह रंग अनोखा कैसा |

कामना कला की विकसी

कमनीय मूर्ति बन तेरी

खींचती है ह्रदय पटल पर

अभिलाषा बन कर मेरी |....

अब तो मैं भी जानने लगी हूँ कि यह कविता किस ने लिखी है क्यूंकि अब मुझे भी कविताओं से प्रेम होने लगा है|….और अब वह व्याकरण का घोड़ा मुझे अपनी पीठ से भी नहीं गिरता बहुधा जिसकी लगाम तुम्हारे हाथों में हुआ करती थी | आज मैं उस घोड़े पे सवार सरपट पहुँच जाती हूँ कविताओं की उस भूमि जहां पर कई रंगों की भावनाओं में डूबे महकते हुए अनेक रंगों के फूल खिले होते है,  .... और मैं रंग जाती हूँ उनके रंग में क्यूंकि आज रंग गयी हूँ रंग में तेरे .....और रॅाक स्टार चलचित्र  के इस सूफियाना गीत के बोल अक्सर फूट पड़ते हैं…. 

 

रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन

ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन

रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन

ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन ..

 

 

Posted by डॉ. नूतन डिमरी गैरोला-







       
जब कुछ भी नहीं था, वही था वही था , रंगरेजा




9 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर कविता..

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  2. खुबसूरत अभिवयक्ति......

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  3. मनभावन प्रस्तुति.......
    स: परिवार नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार कीजियेगा.

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  4. सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
    भावविभोर करती हुई.
    नवरात्रि की बधाई और शुभकामनाएँ.

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  5. जितनी सुंदर कविता उतनी ही सुंदर भावाबिव्यक्ति ।

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  6. बहुत खूबसूरत , लाजवाब सूफियाना कलाम ।

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  7. विजय दशमी आपको शुभ हो ।

    बहुत ही सुन्दर ,भावों से भरी कविता ।

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  8. दो नयनों में बरसात बसी ,
    और तुम बोले ही जारहे हो !

    हृदय स्पर्शी !

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  9. भाव मय ... रो में बहा ले जाती हुई पोस्ट ओर भावनात्मक पंक्तियाँ ...

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