विश्व गौरैया दिवस २० मार्च २०१३ को मेरी भावना और मेरी खींची हुई तस्वीर ======================================================= “चुनचुन करती आयी चिड़िया दाल का दाना लायी चिड़िया” .. माँ यह गीत गाती तो हम बच्चों की आँखें टुपुर- टूपूर छत और आँगन की ओर निहारने लगती .. फुदकी रहती वो सफ़ेद और भूरी गौरैया छज्जे और मुंडेर में , घर के आँगन में .. दाना डालते तो चुगती, चीं-चीं बातें करती और अचानक किसी हवा के झोंके सी उड़ जाती, दरख्तों पर सुबह सवेरे सांझ को उनकी मन्त्रमुग्ध करने वाली चहक, सुबह का सुरीला गीत, घर के आँगन की एक रौनक ... अलसाई दोपहर में चुलबुलाहट बन उतरती आँगन में और बच्चों की खिलखिलाहट बन जाती .. और छिछले पानी के कोटरों में दिन की धूप में छुडबढ़- छुडबढ़ नहाना, पंख फडफडाना कितना अच्छा लगता था उसे घंटो निहारना फुदकती नाचती लगती थी वह … कभी देखती तिनका तिनका जोड़ती घोसला बनाती और छोटे छोटे अंडे देती, छोटे छोटे बच्चे होते जो बड़े बड़े मुंह खोल चीं चीं करते, और माँ गौरैया और पिता गौरैया खाने की जुगाड कर लाते और उनकी चौंच में चोंच डाल उनकी भूख को शांत करते …यह सिलसिला मैंने कई बरसों देखा . पर अब तो चुनचुन करती आई चिड़िया गाने वाली मेरी प्यारी माँ जाने किस दुनियाँ में जा बसीं और ये पनीली आँखें माँ संग अब इन गौरैया को भी ढूँढती है| मेरा आँगन सूना हो चला है .. मैं गौरैया को पुकारती हूँ और कहती हूँ गौरैया एक पूरी प्रजाति हो तुम किस जहाँ में जा बसने लगी हो... कालातीत नहीं होने देगा तुम्हें आने वाला कल, गौरैया तुम लौट आओ देखो मैंने कुछ पौधों को रोपा है इस उम्मीद में कि कल दरख्तों पे होगा तुम्हारी खुशियों का घर आँगन .. होगी कुछ खुली हवा कुछ हरियाली, इसलिए तुम उन काली आँधियों की फिकर न करना जिन्होंने चिमनियों से उठ कर इस हवा को जहर से भरा है, उन कंक्रीट की फिकर न करना जिसने तेरे आम बरगद, टेसू नीम को नेस्तानाबूत किया है, कुछ चिंता की लकीरें माथे पर बलखाने लगी है इंसा की कि ऐसी आबोहवा में जब अस्तित्व गौरिया का खतरे में पड़ा तो आने वाले कल में काली हवाओं के शिकंजे में हमारी पीडी का क्या होगा, चेत रहा है आदमी, कुछ तो ऐसा करेगा आदमी कि हरितिमा का श्रृंगार करेगी धरती फिर से .. गौरैया तुम लौट आओ .... . . यह गीत आज फिर याद आया ---- . . ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया | अंगना में फिर आजा रे || ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया | अंगना में फिर आजा रे || अँधियारा है घना और लहू से सना, किरणों के तिनके अम्बर से चुन के | अंगना में फिर आजा रे || हमने तुझपे हजारो सितम हैं किये, हमने तुझपे जहां भर के ज़ुल्म किये | हमने सोचा नहीं, तू जो उड़ जायेगी || ये ज़मीं तेरे बिन सूनी रह जायेगी, किसके दम पे सजेगा मेरा अंगना ||| ओ री चिरैया, मेरी चिरैया | अंगना में फिर आजा रे || तेरे पंखो में सारे सितारे जडू, तेरी चुनर ठनक सतरंगी बुनू | तेरे काजल में मैं काली रैना भरू, तेरी मेहंदी में मैं कच्ची धुप मलू || तेरे नैनो सजा दूं नया सपना ||| ओ री चिरैया, मेरी चिरैया | अंगना में फिर आजा रे || ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया | अंगना में फिर आजा रे || ओ री चिरैया….. आज गौरैया दिवस पर अपनी खींची यह गौरैया तस्वीर - मेरा क्लिक |
बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRecentPOST: रंगों के दोहे ,
बचपन की यादों में बसती गौरया..
ReplyDeleteगौरेया की वापसी चाहने वालों से कहो कि वे उनका शिकार बन्द कर दें और शाकाहारी बनें।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील पंक्तियां। आपकी इच्छा पूर्ण हो, इस कामना के साथ होली की शुभकामनाएं।
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