कभी जाती थी आ जाने के लिए तो कभी आती हूँ जाने के लिए ... यही तो जीवन है .. जिंदगी की रवायत है, रवानगी इसी में है ... छिपी है जिसमें आने की ख़ुशी तो जाने का गम भी है ... बेसाख्ता मुस्कुरा जाओ गर मेरे आने पर कभी तुम तो हिज्र की खलिश को भी सहने का दम भरना, ....मेरी रुखसती की इक स्याह रात को सह लेना इस कदर तुम .. कि न माथे पर शिकन लाना न आँखों में हो नमी .. . अब्र के घूँघट में मुस्कुराएगा महताब किसी रोज फूटेगी चाँदनी झिलमिल बरस बरस और आफ़ताब खिल उठेगा ले कर इक नयी सुबह . मुस्कुराएंगे गुल नए, कि महकेगी कली कली .. वक्त अपने दामन में ले आएगा खुशिया नयी नयी ........ मेरे जाने का गम न करना मैं आउंगी फिर कहीं किसी रोज ... |
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Friday, July 26, 2013
फिर कहीं किसी रोज
Tuesday, July 16, 2013
समुन्दर किनारे, एक अनजाना
Wednesday, July 10, 2013
खुद से दूर - डॉ नूतन गैरोला
Subscribe to:
Posts (Atom)