Friday, July 26, 2013

फिर कहीं किसी रोज

 

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कभी जाती थी आ जाने के लिए तो कभी आती हूँ जाने के लिए ... यही तो जीवन है .. जिंदगी की रवायत है, रवानगी इसी में है ... छिपी है जिसमें आने की ख़ुशी तो जाने का गम भी है ... बेसाख्ता मुस्कुरा जाओ गर मेरे आने पर कभी तुम तो हिज्र की खलिश को भी सहने का दम भरना, ....मेरी रुखसती की इक स्याह रात को सह लेना इस कदर तुम .. कि न माथे पर शिकन लाना न आँखों में हो नमी .. . अब्र के घूँघट में मुस्कुराएगा महताब किसी रोज फूटेगी चाँदनी झिलमिल बरस बरस और आफ़ताब खिल उठेगा ले कर इक नयी सुबह . मुस्कुराएंगे गुल नए, कि महकेगी कली कली .. वक्त अपने दामन में ले आएगा खुशिया नयी नयी ........ मेरे जाने का गम न करना मैं आउंगी फिर कहीं किसी रोज ...
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और कानों में इक गीत लिखते लिखते बजने लगे ... रहे ना रहे हम महका करेंगे बन के कली, बन के सबा, बाग-ए-वफ़ा में  ~nutan~

13 comments:

  1. और मेरे कानों में गूँज उठी amrita pritam जी की वो नज़्म....
    "मैं तुम्हें फिर मिलूंगी....."

    अनु

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  2. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  3. बहुत ही भावपूर्ण सुंदर रचना.

    रामराम.

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  4. बहुत सुंदर,मेरी और से ढेरो शुभकामनाये स्वीकार करे

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  5. यही तो जिन्दगी है..बहुत सुन्दर..नूतन जी..

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  6. मेरे जाने का गम न करना मैं आउंगी फिर कहीं किसी रोज...
    वाह..क्या बात ? क्या ख्वाब ?.....

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  7. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  8. बहुत ही सुंदर रचना.

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  9. बहुत सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति संजोई है इन चंद पंक्तियों में आपने, बधाई।

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    1. धन्यवाद आदरणीय नन्द जी

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