कभी जाती थी आ जाने के लिए तो कभी आती हूँ जाने के लिए ... यही तो जीवन है .. जिंदगी की रवायत है, रवानगी इसी में है ... छिपी है जिसमें आने की ख़ुशी तो जाने का गम भी है ... बेसाख्ता मुस्कुरा जाओ गर मेरे आने पर कभी तुम तो हिज्र की खलिश को भी सहने का दम भरना, ....मेरी रुखसती की इक स्याह रात को सह लेना इस कदर तुम .. कि न माथे पर शिकन लाना न आँखों में हो नमी .. . अब्र के घूँघट में मुस्कुराएगा महताब किसी रोज फूटेगी चाँदनी झिलमिल बरस बरस और आफ़ताब खिल उठेगा ले कर इक नयी सुबह . मुस्कुराएंगे गुल नए, कि महकेगी कली कली .. वक्त अपने दामन में ले आएगा खुशिया नयी नयी ........ मेरे जाने का गम न करना मैं आउंगी फिर कहीं किसी रोज ... |
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Friday, July 26, 2013
फिर कहीं किसी रोज
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और मेरे कानों में गूँज उठी amrita pritam जी की वो नज़्म....
ReplyDelete"मैं तुम्हें फिर मिलूंगी....."
अनु
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर,मेरी और से ढेरो शुभकामनाये स्वीकार करे
ReplyDeleteयही तो जिन्दगी है..बहुत सुन्दर..नूतन जी..
ReplyDeletevery nice nutan ji .
ReplyDeleteमेरे जाने का गम न करना मैं आउंगी फिर कहीं किसी रोज...
ReplyDeleteवाह..क्या बात ? क्या ख्वाब ?.....
गहरा संवाद..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति संजोई है इन चंद पंक्तियों में आपने, बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय नन्द जी
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