कुछ पुराने पत्र अलमारी में गुलाबी झालर वाले पर्स में, दो दशक बाद भी उस कशिश के साथ गिडगिडाते हुए .....
कि देखो मैंने श्याम श्वेत ठोस उड़ानों को लाल ख्वाबों के जाल में फंसने के लिए छोड़ दिया है जबकि मैं खुद को परिवर्तित कर रही हूँ लाल गुलाब में ....
मां पिता ने बलाए ली है कि मैं श्याम श्वेत पथ से शिखर पर जाने वाले मार्ग को छोड़ दूँ .....
महावर भरे पैरों के निशान तेरी दहलीज पे उकेर दूँ और अपने बचपने को त्याग लाल चुनर की जिम्मेदारी को ओड लूँ .......
ख्वाबों के सतरंगी परिंदे उनके क़दमों पर रख दिए मैंने स्वीकार है तुझे अपनी इच्छाओं की ठसक को छोड़ मैं खुद को लाल रंगों में रंगने की भरसक कोशिश में अपने को भुलाती हुई तेरी ओर आती हुई .......
अभी मेरे हाथों में मेहंदी लगी हुई है घर के कोनों में हल्दी भरे हाथो के निशां और दरवाजे से घर के अंदर आते हुए लाल महावर के निशां और एक छत.........
और उस छत के नीचे अजनबी की तरह जीते हुए घुटनभरे दो दशक --------------------------------------------- शायद तेरे पुरुषत्व ने कभी माफ नहीं किया उस छोटी लड़की को जिसने अपनी ऊँची उड़ानों की जिद्द आखिरकार छोड़ दी थी और लाल चुनर ओढ़ ली थी ........... ~nutan~ |
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Tuesday, September 10, 2013
पुरानी पाती और लाल ख्वाब
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वाह....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....बेहद अर्थपूर्ण!!!
अनु
सुन्दर अभिव्यक्ति ....शानदार..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,
ReplyDeleteRECENT POST : समझ में आया बापू .
गहन भाव लिए सुन्दर रचना..नूतन जी
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteअत्यन्त सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआज की चर्चा : ज़िन्दगी एक संघर्ष -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-005
हिंदी दुनिया -- शुभारंभ