जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च-
मरती रही, मर मर जीती रही पुनः,
चलता रहा सृष्टिक्रम,
अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Monday, June 30, 2014
अनुनाद में मेरी दो कवितायें …
प्रिय मित्रों - मुझे बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि अनुनाद ब्लॉग में मेरी दो कवितायें प्रकशित हुई है… आशा है कि आपको भी ये कवितायेँ पसंद आएँगी … .. जरूर देखिएगा और अपनी राय दीजियेगा वहाँ …
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (18-09-2013) प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर है माता -चर्चा मंच 1372 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@जब भी जली है बहू जली है
आपकी दोनों कवितायें बहुत पसंद आईं.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई.