Saturday, July 9, 2011

आखिरी लपक–डॉ नूतन गैरोला



          10-02-MonachofLove



स्थिर थी वो
जो रक्स करती
रोशनियों के संग इठलाती|
आज चंचल बनी, कुलबुलाती है लौ|
कंपकंपाती है, थरथराती है लौ |
है घड़ी अंतिम बिदाई की
लपक आखिरी यूं लपलपाती है |
आत्मा की परी
लंबी उड़ान के लिए
ज्यूं पंख फडफडाती है |
कुछ चिंगारियां है शेष
धूमिल आखिरी धुवें का अवशेष
आँधियों का शोर जोरों पे है,
कालरात्रि का भंवर भोर पे है|
कमजोर अँधेरे उठ खड़े हुवे हैं
लुप्त होता जान लौ को
एक शीत मुस्कराहट के संग
अपने उजले भविष्य पर दंग
स्वागत गीत गाते हैं वो|
समय का खेल
जल चुका है तेल|
माटी से गढा दीया
माटी में पड़ा दीया
अब माटी होने को है|
रे कुम्हार!
सुन मेरी आखिरी विनती पुकार
कर सृजन अगण्य दीयों का|
जिनसे हार चुका उजाला
उस तमस को दूर करना
|

 

डॉ. नूतन गैरोला .. ९ जुलाई २०११



   

29 comments:

  1. Nutan ji, aapne goodh bhavon ko bahut hi sahej dhanf se vyakt kar diya hai. Badhayi.

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  2. सुन्दर संदेश देती बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  3. कमजोर अंधेरे उठ खड़े हुए हैं................

    ओह, क्या अभिव्यक्ति है| बहुत खूब|

    बेहतर है मुक़ाबला करना

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  4. अति सुन्दर,प्रेरणास्पद, दिल को छूती अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.क्या सुन्दर चित्र खींचा है आपने 'आखरी लपक' का.
    मेरे ब्लॉग पर आकर सुन्दर भावपूर्ण टिप्पणी करके मुझे कृतार्थ कर दिया है आपने.
    हृदय से शुक्रिया.

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  5. सार्थक सोच और सुंदर भाव की अच्छी प्रस्तुति

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  6. दीये के साथ तेल और बाती भी चाहिए ... सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  7. आदरणीय बहन सुश्रीनूतनजी,

    कृपया आप नीचे दिए गए लिंक पर, `देल्ही बेली` फिल्म का रिव्यु और फिल्म की लिंक भी पढ सकेंगी,आपने मेरे गुजराती आर्केटिल्स के ब्लॉग की मुलाकात ली थीं । हीन्दी का ब्लॉग लिंक निम्न प्रकार है । मेरा उत्साह-वर्धन करने के लिए आपका अनेकोनेक धन्यवाद।

    आपका मेईल ऍड्रेस न होने के कारण यहाँ मैसेज छोड़ा है,मुझे क्षमा करें प्लीज़..!!

    http://mktvfilms.blogspot.com (Hindi Articles)

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  8. एक कवि हृदय की सृजनकर्ता से सच्ची गुहार!

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  9. सुन्दर, सार्थक अभिव्यक्ति|

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  10. Waah aap bahut accha likhtee hain.

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  11. बेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई।

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  12. sunder bimb ka prayog kiya hai. sunder sandesh deti abhivyakti.

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  13. सुन मेरी आखिरी विनती पुकार
    कर सृजन अगण्य दीयों का|
    जिनसे हार चुका उजाला
    उस तमस को दूर करना|


    बहुत ही सुन्दर...बधाई

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  14. कर सृजन अगण्य दीयों का ...
    अच्छी संदेशपरक कविता

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  15. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ||
    बहुत बधाई ||

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  16. दिल की गहराई से लिखी गयी रचना बधाई

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  17. अभी दुबारा पढी कविता, लगा फिर से कुछ कहूं। अन्तिम पंक्तियों में कविता का निचोड़ सा आ गया है। बधाई।

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  18. कर निर्माण उन दीयों का जो कर सकें तम को दूर ...
    बहुत प्रवाहमयी .... लाजवाब ओज़स्वी रचना है ...

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  19. बहुत सुंदर ! गहन संदेश छिपाए भावयुक्त कविता !

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  20. डा. साहब मैं निःशब्द हूँ की क्या कहूँ इस रचना के लिए

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  21. आखिरी लपक ...

    जिनसे हार चुका उजाला
    उस तमस को दूर करना
    .........................व्याकुल भाव ...हर हाल में अन्धकार का विनाश हो

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  22. यह लपलपाती लौ भी बुझने के पहले न जाने क्या क्या कर जाना चाहती है।

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  23. सुन्दर संदेश देती बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  24. गहन भावों का समावेश .. ।

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  25. क्यों रात भर नहीं आती .आपके ब्लॉग पर आके अच्छा लगा .कई जगह आपका नाम देखा पढ़ा आज साक्षात ब्लॉग दर्शन किया .शुक्रिया .मरीज़ के मानसिक कुन्हासे का बेहद खूबसूरत चित्रण .
    सृजन के क्षणों का एहसास कराती रचना .अँधेरे उजाले का शाश्वत संघर्ष ,कशमकश चलती है चलती रहेगी .यही तो द्वंद्व है .

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