जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Wednesday, December 26, 2012
Sunday, December 16, 2012
मेरी डगर - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
Tuesday, October 30, 2012
नयी सुबह का ख्याल
Monday, October 15, 2012
तुम मैं और वह कविता - डॉ नूतन गैरोला
तुम्हें याद है क्या कि तुम किसी अनजान की कविता सुना रहे थे उस रात …..शायद तुमको तो मालूम था तब कि कविता किसकी थी …... मैं तो बस सुन रही थी …...सुनना मेरा काम था और सुनाना तुम्हारा ….. तुम तो कविता में खोये थे और मैं? .. . मैं तुम में .. तुम बोले जा रहे थे --
कुछ विकल जगारों की लाली कुछ अंजन की रेखा काली उषा के अरुण झरोखे में जैसे हो काली रात बसी दो नयनों में बरसात बसी .. बिखरी बिखरी रूखी पलकें भीगी भीगी भारी पलकें प्राणों में कोई पीर बसी मन में है कोई बात बसी दो नयनों में बरसात बसी ... तुम सुना रहे थे ..उधर बाहर बारिश का शोर था और इधर अंदर मेरी आँखों में भी बरसात का जोर था …. तुम इन सबसे अनभिज्ञ पूरे मनोयोग से किताब पर मन लगाए हुए थे और यह बेदर्द कविता ज्यूं मेरे ही हाल को बयां कर रही थी …...यही वह कविता थी न जिसने तुमको नजदीक हो कर भी मुझसे दूर कर दिया था| साथ रह कर भी हम तुम कहाँ साथ थे …. तुम कविता में डूबे मुझसे बेखबर अपने पात्रों को गढ़ते, लिखते, पढ़ते और मैं तुम में खोयी खुद को तुम में ढूंढती अतृप्त सी ….. क्या तुम्हें मालूम है कि आज भी तुम यह कविता मेरे लिए गा सकते हो क्योंकि कुछ मेरा हाल ऐसा ही हो कर रह गया .…. और आज मैं भी गुनगुना रही हूँ एक कविता की पंक्तियाँ अब छूटता नहीं छुडाये रंग गया ह्रदय है ऐसा आंसूं से धुला निखरता यह रंग अनोखा कैसा | कामना कला की विकसी कमनीय मूर्ति बन तेरी खींचती है ह्रदय पटल पर अभिलाषा बन कर मेरी |.... अब तो मैं भी जानने लगी हूँ कि यह कविता किस ने लिखी है क्यूंकि अब मुझे भी कविताओं से प्रेम होने लगा है|….और अब वह व्याकरण का घोड़ा मुझे अपनी पीठ से भी नहीं गिरता बहुधा जिसकी लगाम तुम्हारे हाथों में हुआ करती थी | आज मैं उस घोड़े पे सवार सरपट पहुँच जाती हूँ कविताओं की उस भूमि जहां पर कई रंगों की भावनाओं में डूबे महकते हुए अनेक रंगों के फूल खिले होते है, .... और मैं रंग जाती हूँ उनके रंग में क्यूंकि आज रंग गयी हूँ रंग में तेरे .....और रॅाक स्टार चलचित्र के इस सूफियाना गीत के बोल अक्सर फूट पड़ते हैं….
रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन ..
Posted by डॉ. नूतन डिमरी गैरोला-
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Friday, October 12, 2012
फिर एक नयी शुरुआत - डॉ नूतन गैरोला
Thursday, October 4, 2012
फिर एक चौराहा - डॉ नूतन गैरोला
Friday, September 14, 2012
जब हम सर पीटते रह गए - हिंदी दिवस पर दो संस्मरण .. डॉ नूतन गैरोला
मेरे पहले बोल हिंदी| मेरी हर सोच हिंदी| मेरी भाषा हिंदी| मैं अ से ज्ञ तक हिंदी| |
Thursday, August 30, 2012
मैं अबला नहीं - डॉ नूतन गैरोला
Friday, August 3, 2012
वह आदमी और उसका साथ --- नूतन
Wednesday, August 1, 2012
पहला स्पर्श छुईमुइ सा
Wednesday, July 18, 2012
My clicks My Photos - सुबह बगिया के सैर
आज सुबह ७:१५ से ७:४५ (17/8/2012 )तक मैंने सैर की -- और अपने साथियों की तस्वीर खींच ली | आज चंद लम्हों में समेटा दुनियाँ जहां का प्यार मेरी बगिया की गिलहरी चिड़िया चीं चीं चहकती मुझसे बेपरवाह रहती मेरे इर्दगिर्द टहलती | और दीवार पर मेरे समान्तर घूमते रहते एक परिवार के नेवले आवाज लगाते और कहते हम है साथी सैर के ज़रा इधर भी देख ले | मैंने आव देखा न ताव ..तुरंत उन्हें अपने कैमरे से पकड़ लिया … |
सभी फोटो मेरी खींची, मेरी पर्सनल फोटो हैं…
Wednesday, July 4, 2012
बुलबुला हुआ मन - नूतन
Saturday, May 26, 2012
तुमसे आखिरी विनती - डॉ नूतन गैरोला
देखो न …..अभी मुझमे साँसों का आना जाना चल रहा है……जिंदगी के जैसे अभी कुछ लम्हें बचे हुवे है ….. आस का पंछी अभी तक पिंजरे में ठहरा है …. सुबह पर अब सांझ का पहरा है …. और सांझ की इस बेला पर याद आने लगीं है ..वो धुंधली परछाइयाँ ....जब हम संग संग रोये थे…. और इक दूजे के पौंछ आंसू खिलखिला कर हँस दिए थे .. साथ था न तुम्हारा मेरा, तो मलाल किस गम का … लेकिन विधाता को क्या मंजूर था ..छोड़ दी थी डोर उसने मेरी जिंदगी की पतंग की .. तुमसे दूर किसी और आसमां पर जा कर फडफडाती रही जिंदगी .. हवाओं में लहराती रही … बहती रही उधर जिधर बहाती रही …क्षितिज पर चटख रंगों वाली सुनहली अकेली पतंग .. कई हाथों को लुभाती रही … इतर हाथों से फिसलती रही ....डगमगाती रही, पर बढती रही .... तब तक जब तक वह हवाओं की प्रचंडता से टूट कर छिन्न भिन्न न हो जाये या कि बारिश में गल कर टपक ना जाये .. देखो न सिन्दूरी सांझ भी ढलने को है और रौशनी भी गुम होने को है बस तुमसे आखिरी बात …
शाम ढल रही है
पिंजरे में पंछी व्याकुल है
लौ भभक के जल रही है|
सागर पर लहरे ढह रही है
और
रात दस्तक दे रही है
पर अभी
उजाले का धुंधलका बाकी है
तेरे इंतजारी में रौशनी ठहरी सी है
तुझे रौशनी की किरणें छू जाएँ
तू आ जा |
….…डॉ नूतन गैरोला
Sunday, May 13, 2012
ऐसा भी पहाड
Monday, April 30, 2012
उसकी ख़ामोशी के पीछे - नूतन
सुंदरता के
स्निग्ध गालों के पीछे,
रेशमी बालों के नीचे ,
मदभरी आँखों की
हसीन झिलमिलाहट के अंदर….
दिल की जमीन पर -
खाई खंदक और
कितनी ही गहरी दरारें |
दरारों की भीतर
टीसते रिसते बहते हैं आंसू,
पर टपकते नहीं जो आँखों से |
कहीं पवित्रता की स्मिता का सबब
या कहीं मंडी में बिकती देह की मजबूरियां…
अस्वीकार कर अनसुना करती है उस आवाज को
जो कशिश भरती लुभाती है उसे
और अपने ही दिल को तोड़ कर बार बार
खामोश रहती है सुंदरता || ……..
Monday, April 16, 2012
आधुनिक ओस्वित्ज़ केम्प - डॉ नूतन गैरोला
Sunday, April 8, 2012
तुम्हारा विस्तार - नूतन
मन नहीं मानता कि तुझ बिन जी गए हम आँख भर आई जब पिछले रास्ते देखे …… माँ आज माँ की पुण्यतिथि पर माँ के बिना मैंने जीने की कल्पना नहीं की थी … और उनके बिना कैसे जी सकुंगी यह सोच भी मुझे डरा देता था …. जाने क्यों माँ बीमार ना होते हुवे भी अचानक एक ही दिन के पेट दर्द में चली गयीं … जबकि मैं उनके हाथ का सिरहाना बना के सोया करती थी… खूब गीत गाये थे हमने उस रात को जिसके बाद पेट में एक अजीब दर्द के साथ माँ ने हमें छोड़ दिया था ..आखिरी गाना जो माँ ने गाया था …वो था .. ”मन तडपत हरी दर्शन को आज” बेजू बावरा का.. और माँ ने मदर इण्डिया के गीत भी गाये थे ..उनमे एक था - नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढू रे सावरिया, पिया पिया रटते मैं तो हो गयी रे बाव्रियां ….. उनकी पसंद पर मैंने मुकेश के कुछ गाने गाये थे उस रात … और एक गाना झिलमिल सितारों का आँगन होगा रिमझिम बरसता सावन होगा यह हम दोनों ने गाया था ….एक गाना और था जो हमने खूब तान चढ़ा के गाया था ..नागिन फिल्म का.. ऊँची नीची दुनिया की दीवारे सैंया तोड़ के मैं आई रे तेरे लिए सारा जग छोड़ के पर माँ ने जाने क्यों उस से एक दिन पहले मुझे कहा था …” बबली तू बहुत सीधी है, तू जानती नहीं जीवन मृत्यु क्या होता है| मैंने कहा - मै जान कर भी क्या कर सकती हूँ … मुझे नहीं जानना| माँ बोली थी - देख कल मै नहीं रहूंगी इस दुनियां में ..तुझे बहुत कुछ समझाना है ..बताना है ,,( शायद उन्होंने कुछ समझा हो अपने महाप्रयाण के बारे में … आज सोचती हूँ वो घर की व्यवस्था या पिता जी के बारे में बताना चाहती थी ..लेकिन मैं अनजान ) … मैंने कहा तुझे क्या हो रहा है जो ऐसी बातें कर रही है ..मुझे नहीं सुनना ..क्या तुम चाहती हो कि मैं आज ही रो जाऊं ( मेरी मति क्यों मारी गयी थी उस रोज मैं इतनी उदंडी और जिद्दी हो गयी थी जो मैंने सुना नहीं, शायद कार्यभार ज्यादा था मैं थक कर नर्सिंगहोम से आई थी - जबकि मैं तो एक एक बात सुनती और शेयर करती थी माँ से फिर उस दिन मुझे ऐसा क्या हुवा था जो मैंने कुछ नहीं सूना ) … वह फिर बोली थी …सुन ले बाद में मत कहना कि माँ उस दिन कुछ कहना चाहती थी जो मैंने नहीं सुना…लेकिन खबरदार मैं दुनिया छोड़ कर चली भी गयी तो रोना मत, आत्मा को कष्ट होता है, और जो दुनिया में है उसे जीना होता है, तुम्हारे बच्चे है उनके लिए हँसो खेलो ..हमने अपना कर्तव्य पूरा किया …लेकिन वो जो कहना चाहती थी वो मैंने नहीं सुना …. बस तीसरे दिन माँ बिन बात के पेट दर्द बता कर चली गयी और जाते जाते कहती गयी कि मुझे जरा सहारे से उठाओ …मैं तुम लोगो के लिए खाना बना देती हूँ … सब्जी ना भी बना पायी तो सलाद खा लेना ..पर भूखे मत रहना … माँ बहुत ही care taking थी और मन से मजबूत उनकी कितनी ज्यादा तबियत खराब रही होगी जो वो दुनियाँ छोड़ कर चली गयीं पर मैं उनकी पीड़ा नहीं समझ सकी और वो भी कराही नहीं … जब उन्होंने शरीर छोड़ा हम रो रहे थे लेकिन जब माँ के चेहरे पर नजर गयी वह इतनी शांत और मुस्कुरा रही थी … और मुस्कुराते हुवे ही उनके ओज पूर्ण चेहरे ने हमें अपने जाने के बाद भी मुस्कुराने का सबक दिया….. लेकिन मेरे दिल में नस्तर की तरह आज भी वह बात चुभती है जब माँ की बात मैंने सुनी नहीं और वह कह रही थी बाद में मत कहना कि मैंने उनकी बात नहीं सुनी … और सच में आज मेरी जुबान पर यही बात रह गयी कि उस दिन मैंने उनकी बात नहीं सुनी … अब सोचती हूँ जीते जी हम अपनों की बात नहीं सुनते बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी नहीं होता | अगर कोई बीमार आदमी मृत्यु सैया पर भी कुछ कहना चाहता है तो उसके अपने कहते है कि तुम्हें कुछ नहीं होने वाला और उसकी बात को सुना नहीं जाता ….. मेरा मानना है कि हमें उनकी बात भी पूरी तरह से सुननी चाहिए …. बाद में उसकी कोई गुंजाइश नहीं होती… पछता कर भी कुछ नहीं मिलता .. |
फूलों की कोमलता
चाँद की शीतलता
सूरज की रौशनी
दूध की सफेदी
सितारों की आँखमिचौली
श्लोको का आध्यात्म
वचनों की प्रतिबद्धता
पवित्र मंदिर में रमा देवत्व
पानी सी पारदर्शी घुलनशीलता
शब्दों में बसी शहद की मिठास
संगीत की लय
प्यार का रेशमी अहसास
पूजा की घंटियों की आवाज
धरती सा विस्तार
आकाश सा अनंत असीम प्यार
समीर में बसा वेग
ब्रह्मांड की ऊर्जा
साधुवों का तेज
नदी सी निर्मलता
पेड़ की छाँव
मेरा गाँव
दादी चाची सखी का भाव
सब तुझसे ही था माँ
तेरे आँचल की छाँव तले
सब मुझे मिलता था ||
अब तुम नहीं हो
न ही वो आँचल है सर पर मेरे
लेकिन
फूल. चाँद सूरज सितारों में
वचन, शब्द, संगीत में
श्लोकों, पूजा, साधूओं में
धरती आकाश ब्रह्मांड में
भोर दिवस निशा गोधुली में
नदी पहाड़ पेड़ की छाँव में
शहर कस्बे गाँव में
दादी नानी सखी बहन में
दूध शहद पानी में
पंछी मछली हर प्राणी में
जिधर भी नजर घुमाती हूँ
सब में तुम्हें ही पाती हूँ
तूमने सबमे अपना विस्तार कर लिया है
और इस विस्तार में मुझे ऐसे घेर लिया है
जैसे मुझे समेट लिया हो अपने आलिंगन में
मेरे बचपन को फिर से अपनी गोद में भर लिया हो
पहले तुम में मेरी सारी दुनियां थी माँ
अब मेरी सारी दुनिया में तुम ही हो माँ यहाँ ,
मुझे अपने घेरे में घेरे हुवे
अकेली कहीं से भी नहीं मैं |……… नूतन