सतह पर पानी के छमछम का शोर कर थिरकती बूंद अपनी थाप से पानी के गीत गाती है जब| छिछला पानी आह्लादित हो कर मोती सा हो जाता है तब|
भूल कर अपनी हदों को छोड़ देता है सतह को बुलबुला हो जाता है तब अपने होने के अहसास में फूलता है और फूल कर फूट जाता है क्षणभर में तब|
जबकि यह महज़ एक खेल है थिरकती बूंदों का पानी की अठखेलियों का |
वैसे ही जैसे प्रशंसाओं की मरीचिका से भ्रमित मिथ्या के भंवर में मनमेघ विस्मृत सा बरसता नहीं फूलता है बुलबुले सा और टूट जाता है जब|
------ डॉ नूतन गैरोला .. ४ जुलाई २०१२
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bulbule ki niyati hi hai futna ..........bahut sunder
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नूतन जी .....
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना...
अनु
आज आपके बारे में याद कर ही रहा था कि डेश बोर्ड
ReplyDeleteपर आपकी यह पोस्ट देखी.बारिश तो हुई नहीं हैं हमारे यहाँ अभी,
पर आपकी प्रस्तुति ने रिमझिम रिमझिम बूंदों का अहसास
करवा दिया ,साथ ही बुलबुले के रूप में 'surface tension'
की theory का भी जो कभी इंजिनियरिंग के पाठ्यक्रम के दौरान
पढ़ी थी.
आपने बुलबुले के फूटने के गहन तथ्य की आध्यात्मिकता को बहुत सुंदरता से अभिव्यक्त किया है.
आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
बेहतरीन लिखा है!
ReplyDeleteमन
ReplyDeleteकभी भरा सा,
कभी हवा सा,
कभी जख्म सा,
कभी दवा सा।
बहुत बढ़िया रचना ...आभार
ReplyDeleteबुलबुले की तरह मन भी फूल कर फूट ही जाता है..इसलिए तो कहा है निंदक नियरे राखिये..वे मन को फूलने ही नहीं देते...
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन भाव
ReplyDeleteवाह जीवन दर्शन दर्शा गयी रचना
ReplyDeleteअनीता जी की बात से सहमत हूँ । बहुत प्यारी सार्थक रचना...
ReplyDeleteबुलबुले फूटते है, नये बुलबुले बनाने को...
ReplyDeleteकल 11/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' अहा ! क्या तो बारिश है !! ''
मन के बुलबुले भी फोड़ दिये बारिश के साथ ...सुंदर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन भाव लिए सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
बहुत खूब अभिव्यक्ति...
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