तू कड़क तू है मीठी अलसाई है हर सुबह बिन तेरे .. बिन तेरे एक प्यास अनबुझी सी हर शाम अधूरी सी .. एक तलब लब पे आ के जो बुझाती है उसे जी लेते है चुस्की संग.. चुस्की संग होती हैं शामें तरोताजा मदमस्त सी और रातें उन्नींदीं सी .. डॉ नूतन गैरोला - प्रकृति से तो सभी प्रेम करते हैं पर व्यक्तिक तौर पर प्रेम हम किस से करते है - व्यक्ति विशेष, वस्तु विशेष, आदत विशेष, शौक विशेष से या किसी खाद्य सामग्री या पेय से | और चाय के प्रति मेरा अगाध प्रेम है … वैसे भी हम पहाड़ियों को तो ठण्ड में राहत देने के लिए चाय एक शौक ही नहीं, एक आदत बन जाती है| और जब बाहर ठण्ड हो, कोहरा छाया हो या फिर हम ट्रेकिंग पर पहाड़ियों में घूम रहे हो, तो चाय से निकलती भाप ठण्ड से लाल पड गयी नाक को राहत देती है … स्टील के ग्लास में रखी गरमागरम चाय हाथों को गरम करती है और चुस्कीयों के साथ शटर शटर या सुड़ुक सुड़ुक करके चाय पीने से एक तृप्ति का अहसास भरती है और फिर हाआआ करके गर्म हवा बाहर निकलना - अंदर की थकान को भी बाहर निकालता है ..और ठण्ड में उठती भाप और मुंह से निकले गर्म वाष्प के लच्छे गर्मी को बढ़ाते हैं ( मैं अत्यधिक जाड़े वाले मौसम की बात कर रही हूँ) और फिर गरमागरम पकौड़ी और जलेबी हो साथ तो क्या बात .. और गर्म चाय गले से नीचे उतरी नहीं की ताजगी और उर्जा से भर देती है..वैसे तहजीब तो बिना आवाज के चाय पीने की है पर चाय का लुत्फ़ लेना हो तो खूब आवाज कर चाय पीजिए| अब क्या कहूँ चाय के बारे में जिसके बिना अधूरा अधूरा सा लगता है….
रुद्रनाथ के रास्ते में काफी ऊंचाई में यायावरों के लिए चाय और सुरक्षित जगह - डॉ प्रकाश भट्ट रुद्र्नात की ट्रेकिंग के दौरान कडाके की ठण्ड में चूल्हें में बनी चाय का आनंद लेते हुए - चाय का शौक और चाय की तलब इतनी ज्यादा और इतनी आम है कि रेलवे स्टेशन की पहचान भी चाय वाले की आवाज से होती है … चाय है चाय है या चाय गरम चाय गरम … आवाज कितनी भी कड़क हो ..मुसाफिर की थकान चाय के साथ उतर जाती है , गली मोहल्ला, नुक्कड़, ऑफिस, बाजार, भीड़ वाली सड़क हो सुनसान सड़क या पहाड़ में ट्रेकिंग करते हुवे, जहां वीरान है दूर तक किसी भी घर/ झोपडी की उम्मीद ना हो वहाँ भी चाय की दुकान मिल जाती है… पहाड़ो में बहुत ऊंचाई में जहां पेड़ पौधे नहीं होते वहाँ भी घास के मैदानों में जिसे लोकल भाषा में “बुग्याल” कहते है भैस पालने वाले गुज्जर होते है, ताजा और गाढ़ा दूध मिलता है, ऐसे में ट्रेकिंग करने वालों को जिन्हें उर्जा की बहुत जरूरत होती है, ऐसी दूध की चाय ताकत से भर देती है ..पहाड़ के कई गीतों में चाय का जिक्र होता है|
मैं अपनी सहेली के साथ एयरपोर्ट में चाय का आनंद लेते हुवे ( हालाँकि वह कोल्ड ड्रिंक ले रही है) - दूध वाली चाय, काली चाय, लेमन टी, ग्रीन लीव टी, हर्बल टी, इंस्टेंट टी,व्हाइट टी .. जाने चाय किस किस रूप में हमारे सामने आती है…ऊपर से आंच पर पकी पूरी चाय या मिक्स करने वाली चाय जिसमें दूध चीनी बाद में मिलानी पड़ती है. या फिर मशीन की चाय या स्टीम्ड टी …पर मुझे तो चाय आंच में पकी ही अच्छी लगती है जो पूरी तरह से तैयार हो …कहीं बाहर जाना पड़ता है तो मैं अपनी पसंदीदा चाय को मिस करती हूँ और पैकेट की चाय पीनी पड़ती है मजबूरीवश
सिंगापुर में यह चाय तो बिल्कुल ही पसंद नहीं आई वैसे ही छोड़ दी - जायका और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बाज़ार में चाय मसाला भी मिलता है| घर में चाय का जायका बढ़ाने के लिए तुलसी , छोटी इलायची मिलाया जाय तो क्या कहने .. कई लोग लॉन्ग की बहुत ही छोटी मात्रा मिलाते हैं … बरसात और जाड़ों में अदरख और काली मिर्च भी मिली हो तो गुणकारी ही है|
- फिर कोई मेहमानवाजी हो, गोल मेज बैठक हो, सलाह मशविरा हो, मित्र से मुलाकात हो, चर्चा हो, किसी की इंतजारी हो .. चाय दम भरती है ..
अपनी बचपन की सहपाठी के साथ चाय का आनंद( घर में एक मुलाकात के दौरान) - विद्यार्थी भी तो खुद को चुस्तदुरुस्त तरोताजा रखने के लिए चाय का सेवन करते हैं ..और चाय नींद दूर भगाती है ( इस सन्दर्भ में मुझे मेडिकल कोलेज का एक प्रसंग भी याद आ रहा है - जिसे मैं नीचे आगे शेयर करुँगी)
- देर रात पढ़ना हो तो चाय का सहारा साथ देता है.. किसी रचना को अंजाम देना हो तो चाय का साथ …
- अब तो उत्तराखंड में भी चाय के काफी बागान है उत्तरांचल टी भी बहुत जायकेदार है, दार्जलिंग, असम तो चाय के उद्पादन में अग्रणी रहे| ऊटी में भी चाय का अच्छा उद्पादन देखा है ..
ऊटी के चाय बगान में मेरी बेटी और मेरे पति |