जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Saturday, December 7, 2013
Tuesday, September 10, 2013
पुरानी पाती और लाल ख्वाब
कुछ पुराने पत्र अलमारी में गुलाबी झालर वाले पर्स में, दो दशक बाद भी उस कशिश के साथ गिडगिडाते हुए .....
कि देखो मैंने श्याम श्वेत ठोस उड़ानों को लाल ख्वाबों के जाल में फंसने के लिए छोड़ दिया है जबकि मैं खुद को परिवर्तित कर रही हूँ लाल गुलाब में ....
मां पिता ने बलाए ली है कि मैं श्याम श्वेत पथ से शिखर पर जाने वाले मार्ग को छोड़ दूँ .....
महावर भरे पैरों के निशान तेरी दहलीज पे उकेर दूँ और अपने बचपने को त्याग लाल चुनर की जिम्मेदारी को ओड लूँ .......
ख्वाबों के सतरंगी परिंदे उनके क़दमों पर रख दिए मैंने स्वीकार है तुझे अपनी इच्छाओं की ठसक को छोड़ मैं खुद को लाल रंगों में रंगने की भरसक कोशिश में अपने को भुलाती हुई तेरी ओर आती हुई .......
अभी मेरे हाथों में मेहंदी लगी हुई है घर के कोनों में हल्दी भरे हाथो के निशां और दरवाजे से घर के अंदर आते हुए लाल महावर के निशां और एक छत.........
और उस छत के नीचे अजनबी की तरह जीते हुए घुटनभरे दो दशक --------------------------------------------- शायद तेरे पुरुषत्व ने कभी माफ नहीं किया उस छोटी लड़की को जिसने अपनी ऊँची उड़ानों की जिद्द आखिरकार छोड़ दी थी और लाल चुनर ओढ़ ली थी ........... ~nutan~ |
Saturday, August 31, 2013
अँधेरे के वे लोग
Thursday, August 1, 2013
अधूरी स्वीकृति
Friday, July 26, 2013
फिर कहीं किसी रोज
कभी जाती थी आ जाने के लिए तो कभी आती हूँ जाने के लिए ... यही तो जीवन है .. जिंदगी की रवायत है, रवानगी इसी में है ... छिपी है जिसमें आने की ख़ुशी तो जाने का गम भी है ... बेसाख्ता मुस्कुरा जाओ गर मेरे आने पर कभी तुम तो हिज्र की खलिश को भी सहने का दम भरना, ....मेरी रुखसती की इक स्याह रात को सह लेना इस कदर तुम .. कि न माथे पर शिकन लाना न आँखों में हो नमी .. . अब्र के घूँघट में मुस्कुराएगा महताब किसी रोज फूटेगी चाँदनी झिलमिल बरस बरस और आफ़ताब खिल उठेगा ले कर इक नयी सुबह . मुस्कुराएंगे गुल नए, कि महकेगी कली कली .. वक्त अपने दामन में ले आएगा खुशिया नयी नयी ........ मेरे जाने का गम न करना मैं आउंगी फिर कहीं किसी रोज ... |
Tuesday, July 16, 2013
समुन्दर किनारे, एक अनजाना
Wednesday, July 10, 2013
खुद से दूर - डॉ नूतन गैरोला
Saturday, June 29, 2013
मन देशी परदेश से
Friday, June 28, 2013
तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर
Monday, June 10, 2013
मुझे मेरी पहचना चाहिए -
Monday, June 3, 2013
तेरा मेरा होना - डॉ नूतन गैरोला
Saturday, May 18, 2013
रात के ख्वाब
आ
तेरी पलकों पर रख दूँ एक बोसा
मेरे सकून
कि तुझे मखमली नींद का अर्श दे दूँ |
होना मत उदास
न तन्हा है तू कभी |
देख!
तुझे पलकों पर लिए फिरती हूँ सदा
कि ख्वाब से रहे हो तुम
कि मूर्त कर दूँ मैं तुम्हें
कि मैं दौड़ते क़दमों को कभी रोक लूँ ज़रा
कि फुर्सत के चंद पलों में
एक अदद छाँव में
तुझे उतार लूँ कांधो से
और
झूल लूँ तेरी नरम बाहों में
कि पत्ता पत्ता ओंस से नहा लूँ
और रात की झील में
हमारे प्यार की सरगोशियाँ
लहरों पर
न लौट कर जाने के लिए
बस डूबती रहे उभरती रहें
एक सच की तरह
बुलबुले की मानिंद
जो हर बारिश में
पानी की सतहों पर
बनते रहे और बनते ही रहे | ….. ….
पर न कभी मिली फुर्सत
न ही कोई छाँव
और न ठहरी मैं कभी
रात की झील पर |
और न साहिलों पर उतरे तुम
ख्वाबों की कश्ती से
इच्छा की पतवार लिए
प्यार की मौज पर|
फिर नींद उदास आँखों से लौट लौट जाती रही
न ठहरी वो कभी
तेरी आँखों में
न मेरी आँखों में…….
हर रोज ख्वाब रात के दुसाले को उतार
दिन के उजालों में खोता रहा
बस खोता रहा ………
और मैं चलती रही
सिर्फ चलती रही
धुंध से भरी
अनजान मंजिलों की ओर
बढ़ती रही, बढ़ती रही …..................................... नूतन १७ / ०५ /२०१३
Sunday, April 21, 2013
तुम कहाँ हो सीपी
तुम कहाँ हो सीपी … सागर ने कभी बढ कर दो बूंद भर कर भी नहीं दिया पानी वह अपनी जगह लहराता रहा पानी से भरपूर है यह अहम जरूर भरमाता गया .. कहता था कि आओ कि डूब जाओ छोडो उस किनारे को| या दूर किसी पहाड़ के शिखर पर जाओ, चढते जाओ रात के सर्द अंधेरों में ग्लेशियरों में जाओ, जा कर जम जाओ| या रेत में जा कर भरी दोपहर में मरीचिका के पीछे दौड़ो, अतृप्त प्यास से मर जाओ | …………. और आंखे हैं कि बेहिसाब सागर को सोखती रही बस वह घूंट घूंट चुप चुप पीती रही नमक पानी से रोम रोम भिगोती रहीं जो तरल मिला नहीं कभी सागर से दीवारे सैलाब की फटती रही भीतर से … फिर आँखों में उसकी तलहट से छंट छंट कर कहाँ से आता रहा मोती सा | मोती सा ? हाँ मोती सा … जो अभिव्यक्त होने में सदा शेष रहा फिर भी व्यक्त होने के लिए पुरजोर रहा सिर्फ तुमसे हाँ सिर्फ तुमसे इस तरह जैसे .. कोई शब्द नहीं कोई गीत नहीं आवाज भी थी कोई नहीं| जो गिरा आँख से सिर्फ तुमसे था वह एक बूंद केन्द्र का बिंदु प्रेम का निचोड़ तुम्हारी झोली में आ गिरा, रे सागर! जिसमे मन का हँसना रोना मुस्कुराना प्यार मनुहार सभी कुछ मिला था भावनाएं सान्द्र अति सान्द्र बस ठोस नहीं हुई बचा गई अपना तरल जिसमें दिल की हर पुकार और घना प्यार निहित/बंधा बेहद सान्द्र| वह एक बूंद मौन चाँद को इंगित करता रहा जैसे कहता हो चाँद! बेशक तुम रात के रथ पर मगन कभी रोशन कभी धूमिल कभी आते कभी गुम जाते हो मुझे नजरअंदाज कर चले जाते हो फिर भी उत्तर दिशा की रात का एक ध्रुव हूँ मैं अटल तुम्हारे न आने, चुपके से चले जाने से बेशक अंदर से हिल जाता हूँ फिर भी बिन हिले बिन आशा के बस अडिग अटूट प्रतीक्षा में ! बेशक प्यार के सीपी में उस एक बूँद की मोती बनने को दौड जारी है लेकिन बहना उसकी प्रवृति है ठोस उसकी मृत्यु है वह मृत्यु को नहीं चुनेगा पर शास्वत मृत्यु की ओर सतत चलेगा तुमसे मिलने को …. |
Wednesday, April 10, 2013
हाँ! ये तुम्हीं से हैं|
तुम मेरे अनछुवे ख्वाब हो पाकीजा| जैसे किसी बच्चे की झोली में आ गिरे एक डॉलर हो बेहद अनमोल, खर्च करने लायक नहीं हो जो सिक्कों की तरह| तंगहाली में भी पेट की भूख में भी रहता है उसकी जेब में बंद एक रोटी की तरह एक सूरज की तरह| तुम मेरी पलकों में छुपा कर रखे हुए अदेखे ख्वाब हो जिसे रोज प्रस्फुटित होते देखती हूं खुद के भीतर | जैसे एक पुरानी बंद बेशकीमती इत्र की शीशी में सुकूने जिंदगी की खुश्बू जो खुलती नहीं है बाहर सदा महकती रहती है ‘साँसों के साथ मन के भीतर| ख्वाब पूरा होने के लिए नहीं कि फिर एक नया ख्वाब ले जन्म तुम्हारा अधूरापन ही बेहतर है| इससे पहले की नींद पूरी हो और ख्वाब टूट जाए नहीं नहीं मैं तुम्हें बसने नहीं दूंगी पलकों पे पूर्ण हो कर तुम्हें लुप्त भी न होने दूंगी, तुम शेष रहोगे हमेशा अशेष संभावनाओं के साथ सदा रहोगे विशेष बन् कर मेरी आँखों में चमक मेरी आँखों की नमी | हाँ ! ये तुम्हीं से हैं |
…………………….~nutan~
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Tuesday, April 2, 2013
एक मदद मिलेगी ?
नदी की खुशियाँ - डॉ नूतन गैरोला
Thursday, March 21, 2013
गौरैया लौट आओ
Wednesday, March 20, 2013
कविता और प्यार
Monday, March 18, 2013
मेरे घर में बसंत
Monday, March 4, 2013
बालिकाओं पर एक दिवसीय कार्यशाला
मित्रों! यह बताते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है कि १७ फरवरी को धाद महिला एकांश, देहरादून द्वारा बालिकाओं (Teenager/ Adolescent ) के समग्र विकास के लिए एक कार्यशाला का आयोजित की गयी थी जिसमें बालिकाओं के स्वास्थ सम्बन्धी, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक पहलुवों पर शिक्षा और अधिकार, भविष्य की योजनाओं के अनुरूप कार्य किस तरह से करें यानी प्लेनिंग के बारे में बताया गया| उनके अंदर निहित रचनाशीलता को बढाने और जागरूक करने के लिए उनसे कार्यशाला से कुछ दिन पहले ही उन्हें “समाज और परिवार में बालिका की स्तिथि” पर पेंटिंग, कविता और लेख लिखने के लिए दिया गया| कार्यशाला के दिन उन्हें इन विधाओं पर भी समग्र जानकारी दी गई और छोटी से छोटी बच्ची ने भी माइक में अपने विचार खुल कर रखे, अपनी कवितायेँ सुनाई | मेरे लिए खुशी की बात यह थी कि उस दिन मंच का संचालन मैंने किया और जैसा मैंने पाया और औरों ने भी बताया मेरा संचालन काफी अच्छा था और कार्यशाला में एक पारिवारिक माहोल बन गया जिस से बालिकाओं ने निर्भीक अपने विचार रखे और जानकारी हासिल की| मैंने बालिकाओं को स्वस्थ सम्बन्धी पहलुओं पर भी जानकारी दी तथा उनकी स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं पर उनको उपयुक्त सुझाव दिए | यह एक दिवसीय कार्यशाला जरूर थी किन्तु इसमें १ महीने पहिले से ही बालिकाएं अपनी प्रविष्टियों लेख कविता पोस्टर द्वारा भाग लेने लगी थी| |