Wednesday, March 20, 2013

कविता और प्यार



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मैंने तुम्हें
पन्नों पन्नों में ढूँढा है
जहाँ कही भी मिली हो पढ़ा है |
कलम उठाई तो
उकेरा है हर कागज़ में|
जानती हूँ ..
तुम्हारा पन्नों से है गहरा वास्ता
इसलिए मैंने तुम्हें दिल से उतार 
पन्नों में गढा है|
तुम मेरे पन्नों में लिखी इबादत हो
तुम मेरी गुफ्तगू का निज तत्व हो 
मेरे प्यार का मकबरा भी हो तुम
और तुम्हीं मेरे जीने का सबब हो 
तुम मेरी प्यारी कविता हो | ……………. नूतन
लव यू फॉरएवर











5 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    बना रहीं हैं मक़बरा, देखो नूतन आज।
    काग़ज़ में छाया हुआ, प्यार-प्रीत का राज।।
    --
    आपकी पोस्ट की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी है!
    http://charchamanch.blogspot.in/2013/03/1189.html

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  2. पन्नों में ही साक्षात कर देने की कला है ये रचना ...
    बहुत खूब ...

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  3. सब कुछ इससे ही कह डाला..

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