Sunday, October 10, 2010

तू कौन ? - एक पागल की पीड़ा ? Dr Nutan Gairola

तू कौन ? - एक पागल की पीड़ा ?



चिंतन एक पागल के मन का



मन रे पागल मन
कभी इस डाल से बंधता
तो कभी दूर छिटकता
तो कभी इस पात पे होता
तो कभी उस शाख से फंसता
कभी तुझे  सड़कों  पे देखा
तो कभी मिट्टी से लोटा

मैंने देखा है तुझे नाचते इठलाते
अपनी धुन में गुनगुनाते
तो कभी बुझे मन से चुप
अपनी धुन में खोया
गुमसुम सा किसी
दुकान के नीचे सोया
कभी किसी मकान के पीछे
कागज के चिथड़े पर
कुछ अंकित करता हुवा
यूँ कि जैसे कोई
ख़त लिखता  हुवा
जो दर्द कोई न समझे
उस दर्द को बयाँ करता  हुवा  

मन ऐ मन मैंने पाया है
तुझे भीड़  में या कभी सुनसान में
तू चिल्लाता  हुवा  सड़क पर
कभी किसी राहगीर पर
बेवजह गुर्राता हुवा
यह वजह बेवजह नहीं
यह उस घुटन का
उस तड़पन का
उस छटपटाहट का
उस चुभन का
अहसास है जो उस मन की
तुमने कभी सुनी न  देखी 

कभी तेरे दर्द का
किसको अहसास रहा
तू दर्द में रोता रहा
देख यह कोई हँसता रहा
तू जब भी  पीड़ा  से छटपटाता रहा
देख यह कोई तुझे थप्पड़ लगाता रहा
तू दर्द सारे बीती बाते,
बीती यादे दिल में छुपाये
अपने दिल के दर्द के अहसासों को दबाये
गलियों में हँसता गाता रहा है

तेरी उलझन पीड़ा का उफान
जब हद से पार हुवा है
तेरा क्या कसूर
तुने बहुत रोका
भावनाओं के उन  सैलाबों  को
अजीबो गरीब  ख्यालातों  को
जब बांधे नहीं बंधा, तो टूट गया
तूफ़ान  हवा  में उठ गया,
और फिर तू रोता
हँसता  गिड़गिडाता
गली में चीखता चिल्लाता,
कभी डंडा पटकते तो
कभी पत्थर उठाये
एक पांव में जूता तो
दुसरे में  मोजा  लगाये
अपनी भावनाओं पे
दुसरी भावनाओं को दर्शाता हुवा,
रोता मन तू हँसता गाता हुवा ,
फटे  चिथड़ों  से
मटमैला तन दर्शाता हुवा,
कभी किसी हास्य नाटक के
कमेडियन पात्र की तरह
तो कभी किसी विरहन वियोगी
या फिर योगी
कभी जेंटलमैन की तरह,
अपने गम को छुपाये
किसी से हाथ मिलाता हुवा
रोता मन तू हँसता गाता हुवा|
सोचो तो तू कौन ?
एक पागल या एक आ
म इंसान ?




















16 comments:

  1. अज के समय मे शायद हर आदमी ही पागल है। पागल के माध्यम से आदमी के दिल की कशमकश को अच्छे शब्द दिये हैं। शुभकामनायें

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  2. मन की उड़ान को आपने बहुत यत्नपूर्वक शब्दों में बाँधा है!
    --
    साहित्यश्री डॉ.नूतन गैरोला जी को बधाई!
    --

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  3. धन्यवाद निर्मला जी .. नवरात्रि पर शुभकामनाएं

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  4. डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी ..शुक्रिया आपका .. शुभकामनाएं

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  5. आपके ब्लॉग की सुन्दरता देखने योग्य होने के साथ ही बहुत बढ़िया हैं. खासतौर पर फूल द्वारा धन्यबाद कहना, ब्लॉग पर हिंदी लेखन की सुविधा, कलैंडर, चमक विखरता एक पौधा, किन देशों के नागरिकों द्वारा देखा जा रहा है ब्लॉग की जानकारी देता साईन बोर्ड, रुकने की अपील करती समय की धारा-घड़ी, गोल्डन कलर संदेश, फेसबुक बोर्ड, सम्मान-पत्र, तस्लीम विजेता के प्रमाण पत्र, आपके पूज्य माता-पिता की तस्वीर और उस पर ब्लॉग में चार चाँद लगाती उगते सूरज की रौशनी की फोटो.मगर चाँद में दाग़ की तरह से एक छोटी-सी कमी है. प्रोफाइल व "पागल की पीड़ा" में कई शब्दों का उच्चारण का सही नहीं लिखा होना. इसका शायद एक कारण यह भी हो सकता है कि-मोहतरमा डॉक्टर साहब है.अग्रेजी की ज्ञाता होगी.आज आपकी एक ही पोस्ट का अवलोकन किया है.बहुत जल्द ही अन्य पोस्टों को अवलोकन करने की कोशिश करूँगा. फुर्सत के क्षणों में मेरे दूसरे ब्लॉग http ://rksirfiraa.blogspot.com को देखने की कृपया करके अपने अनुभवों की कृपा दृष्टि की वर्षा करें.

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  6. पागल मन वाला आम इंसान ...कविता पढले हुए कभी किसी पागल का चेहरा सामने आता है जो कविता में व्यक्त किन्ही कारणों से विक्षिप्त स हो गया हो ....

    बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...शैलाबों को सैलाबों कर लीजिए ..

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  7. इसी पीड़ा में तो सभी कुलबुलाते रहते हैं ।

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  8. धन्यवाद वंदना जी... शुभसंध्या .. शुभनवरात्रि पर्व

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  9. एक मनोवैज्ञानिक कविता ...जिसमें कई भाव छुपे हुए हैं...सशक्त रचना...बधाई।

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  10. मन रे तू है बड़ा छलिया -अच्छी लगी कविता !

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  11. सशक्त रचना...बधाई।
    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
    ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

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  12. ek admi ke man ko bahut achi tareh aapne apne sabdo se sajoya hai.......sach me kavita padker her koi ek baar apne man ke baare me jarur sochega........dhanyabadh buwa ji......subh ratri....

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