सुनो आदम!
युगों से बंधी बेड़ियों से
बंधन मुक्ति के लिए मैंने
जब भी आवाज उठायी ..
अवतित इच्छा को जान
तुने नजरें चुरायी
या भोहें तान कर कह दिया
तुम्हें बाँधा ही है किसने ..
रोष में आ कर
कर दिया मुझे आजाद
और
मुक्ति का शिकंजा कसने लगे |
मुझे रंचभर भी न भाया तुम्हारा ये द्वैत रूप
तब अंतस में मेरा प्रतिरोध जारी रहा|
जिस दिन तुमने अपनी हव्वा को
प्रेम से स्नेहालिंगन में भर
उसके
कानों में फुसफुसा कर कहा
तुम्हारी आजादी से भी मुझे बहुत प्यार है
उस दिन से मैंने बाँध लिया
खुद को तुम्हारे बनाएँ कुलकान के बंधनों में
और इन बंधनों में मिलने लगी है मुझको
सुकून भरी आजादी |
…. ..नूतन २६ / ३ / २०१२ ..१:३० a:m
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मुक्ति का शिकंजा ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बंधनों में मुक्त होने का अनुभव, अति विशेष है..
ReplyDeletevaah kamaal की abhivyakti |
ReplyDeletebadan-yukt azadi ..waah..reminds me of ' Man is born free, but everywhere in chains'~Jean Jacob Roussou the gr8 French philosopher
ReplyDeleteSATEEK LIKHA HAI AAPNE ..AABHAR
ReplyDeleteLIKE THIS PAGE AND SHOW YOUR PASSION OF HOCKEY मिशन लन्दन ओलंपिक हॉकी गोल्ड
वाह बन्धन से मुक्ति से फिर बन्धन्………सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteशानदार ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना. कमाल की अभिव्यक्ति.
ReplyDeletebandhan-yukt*
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
मुक्ति का शिकंजा... आजादी का सुकून....
ReplyDeleteसुंदर बिम्ब प्रयोग... सार्थक रचना...
वाह: बंधन में भी मुक्ति का अहसास..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबेहतरीन भावव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteवाह! इस बंधन में भी मुक्ति का आनंद...बहुत सुंदर रचना..आभार..
ReplyDeleteaap bahut achha likhti hain didi ji.....
ReplyDeletebabut hi khubsurat likha hai...
ReplyDeletehamesha se hi esa hota aaya hai..
babut hi khubsurat likha hai...
ReplyDeletehamesha se hi esa hota aaya hai..
प्यारभरे बंधन में भी मुक्ति का अहसास होता है....
ReplyDeleteबहुत -बहुत सुन्दर रचना...
मुक्ति दरअसल बंधन मुक्त करने में ही है ... प्रेम के कच्चे धागे के बंधन पूर्ण मुक्त करके भी जुड़े रहते हैं ... भाव पूर्ण रचना ...
ReplyDeleteहम्मम्मम निर्मल प्रेम ही तो है सच्छी आज़ादी....है ना...??
ReplyDeleteअदम-हौव्वा के माद्ध्यम से ज़बरदस्त अभिव्यक्ति.
ReplyDeletebahut sundar bhaav bas is rachna ko ek hi shabd dungi aajaad bandhan.
ReplyDeleteसोचने को विवश करती है आपकी अनुपम प्रस्तुति.
ReplyDeleteआदम हव्वा की कहानी पुरानी होकर भी नई लगती है.