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थका परिन्दा - तरसतीं आँखें
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तेरी याद में दिन इक पल सा ओझल होने को है |
और अब शाम आई नहीं है के सहर होने को है ||
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मेरे सब्र का थका परिन्दा टूट के गिरने को है |
दीदार को तरसती आंखे और पलकों के परदे गिरने को है ||
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चिरागों से कह दो न जलाये खुद के दिल को इस कदर |
के रोशनी का इस दिल पर अब ना असर कोई होने को है ||
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मेरी ये पंक्तिया उन थके माता पिता को समर्पित है जिनके बच्चे बड़े होने पर गाँवों में या कही उनेह छोड़ कर चले जाते है अपनी रोजी रोटी के लिए और इस भागमभाग में कहीं बुढे माता - पिता उनकी आस में उनकी यादो के साथ उनका इन्तजार करते रह जाते है.. .....
डॉ नूतन गैरोला 12/जूलाई /2010 ..१०:०० बजे रात्री
photo - google
vyatha ko abhivyakt karti hui sundar rachna!
ReplyDeletesubhkamnayen...
नूतन जी, बहुत सुंदर भाव हैं। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete--------
प्यार का तावीज..
सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?
Dhanyvaad Anupama ji..
ReplyDeleteJakir ji !! Dhanyvaad aur shubkamnayein.
ReplyDelete। आज कमोबेश हर घर मे यही हाल है………………उस दर्द को बखूबी उकेरा है।
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ReplyDelete@ वंदना जी !!
ReplyDelete@ संगीता जी !!
जी हां रोजी रोटी भी आवश्यक जरूरत है..किन्तु माता पिता भी उपेक्षित हो जाते है कभी कभी - कहीं कहीं - बस उनकी आँखों में इंतजारी होती है अपने बच्चों की - आप दोनों को मेरा नमस्कार
आज के समय में माता पिता का यह सर्वव्यापी दर्द है......जीवन के अंतिम पड़ाव में अंतहीन इंतज़ार ही शायद उनका प्रारब्ध है.....बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति.....आभार...
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