मेरे जिस्म में जिन्नों का डेरा है |
कभी ईर्ष्या उफनती,
कभी लोभ, क्षोभ
कभी मद - मोह,
लहरों से उठते
और फिर गिर जाते ||
पर न हारी हूँ कभी |
सर्वथा जीत रही मेरी,
क्योंकि रोशन दिया
रहा संग मन मेरे,
मेरी रूह में ,
ईश्वर का बसेरा है ||
स्वरचित - द्वारा - डॉ नूतन गैरोला 11-09-2010 17:32
काश सबके दिल में इश्वर का बसेरा हो जाए आप ही की तरह
ReplyDeleteयह जिन्न सबको परेशान करते हैं ...एक दिए की तलाश ..काश सबके मन में ईश्वर का बसेरा रहे ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति। कहा भी गया है "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।" बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteदेसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
रचना जी.. !! आपका धन्यवाद - और आप, हम, हम सबके मन में ईश्वर का वाश है.. बस ईश्वर तत्व की जीत हो..
ReplyDeleteसंगीता जी !! आप देवी स्वरुप लगती है.. मजाक नहीं कर रही... आपका आभार आप यहाँ आयीं ... आपका धन्यवाद ..
ReplyDeleteमनोज जी !! आपका शुक्रिया - आपने जो उदाहरण दोहे के साथ दिया - बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही खूबसूरत और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteक्या बात है, आपने तो रूह में ईश्वर के होने की बात जब से कही तब से सारे जिन्न सकते में आ गये हैं, सार्थक एवं भावमय प्रस्तुति, आभार ।
ReplyDeleteजिसके मन में इश्वर का वास है, वहां जिन्न ज्यादा समय ठहर नहीं सकता... बहुत सुंदर कविता....आभार ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।।
ReplyDeleteअतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
ReplyDeleteक्योंकि रोशन दिया
ReplyDeleteरहा संग मन मेरे,
मेरी रूह में,
ईश्वर का बसेरा है !
बहुत लाजबाब !
ईश्वर में विश्वास की एक सशक्त अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteVery sweet especially the last line..
ReplyDeleteवंदना जी ! सादर धन्यवाद..
ReplyDeleteसादा जी.. बहुत सुन्दर कहा.. :) कि सारे जिन्न सकते में आ गए.. आपका सहृदय धन्यवाद !!
ReplyDeleteडॉ दिव्या .. आपने सही कहा.. शुभसंध्या
ReplyDeleteहास्य फुहार जी सादर धन्यवाद !!आपके ब्लॉग का अपना ही लुत्फ़ है हसने हँसाने का .. :))
ReplyDeleteधन्यवाद संजय भाष्कर जी.. आपके लिए शुभकामनाएं
ReplyDeleteगोदियाल जी !! तहे-दिल शुक्रिया..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर कमेन्ट करने के लिए धन्यवाद. आपने भी बहुत शानदार likha hai. एक डॉक्टर ऐसा लिखे, विश्वास करना आसान नहीं है. क्योंकि उनके पास एक तो टाइम कम होता है और दूसरा दुनिया भर की टेंशन..
ReplyDeleteमेरा एक nya ब्लॉग भी है.. jara gaur फरमाएं..
http://www.tikhatadka.blogspot.com/
कैलाश जी !! धन्यवाद.. शुभकामनाये
ReplyDeleteThanks BUdh.aah.. regard
ReplyDeletesryy it's Budh.aah ji-- regard
ReplyDeleteAamin ji..aapa swagat mere page par.. jaroor udhar bhi jaungi.. aur aapko bata doon ye samay aaraam ke palo se chori kiya huva hai....raatri night duty aur subeh 9 baje ke baad OPD... likhne me araam miltaa hai.. :))
ReplyDeleteOh its all right You can call me budhaaah or simply budh :)
ReplyDeleteAnd while we are at it -what should I call you..Nutan, Nutanji or Amrita?
Nutan Ji..:))
ReplyDeleteHi Nutanji,
ReplyDeleteplease read a ghazal I've written today on'we even cry the same way' my regular blog.
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
भावपूर्ण। जय हो आपकी। आनंद आ गया।
ReplyDeleteआपकी उच्च विचारसरणी का मै स्वागत करती हूं!....उत्तम रचना....बधाई एवं धन्यवाद डॉ.नूतन!
ReplyDeleteBabli ji !! aapka shukriya aur Shubhkaamnye.
ReplyDeleteHari ji.. Dhanyvaad ..Jay ho..
ReplyDeleteDr Aruna Ji !! shukriyaa, aapka aur aapke protsahan kaa aur saath ke liye aapka abhaar..shubhraatri
ReplyDeleteअच्छी कविता। पर लगा जैसे कुछ विस्तार मांग रही थी कविता। औऱ शब्द कहीं रोक से लिए आपने। ये बात सही है कि अंदर का जिन्न दैविय ताकत को रोकने की पूरी कोशिश करता है। इंसान भी अक्सर जिन्न का साथ देता है। कई बार मजबूरी में तो कई बार जानबूझ कर।
ReplyDeleteवाह!! आनन्द आ गया..उम्दा रचना!
ReplyDeleteNutan Ji,
ReplyDeleteNamaste,
Visham paristhiyon mein bhi apne man ko nahin digana chahiye, vivek se manushya aaghey bad sakta hai, Aur Ishwar se hi humko prerna aur sakti milti hai. Thode mein aapne kavita mein bahut kuchh keh diya hai.
Badhaayi.
Surinder Ratti
Mumbai