बेहद बारीक अक्षरों से लिखी गयी थी वो गाथा
स्पष्ट कहीं दिल के अंदर
या किसी किताब में अस्पष्ट किसी चोर पन्ने में
किसी दूसरे नाम से
और जहाँ अक्षर दृष्टिगत थे वहाँ गाथा पर कितने ही लेप
खट्टे, मीठे, नमकीन, कडुवे,
स्वाद बदल दिया गया|
वहाँ गाथा मन के कमरे में नहीं
भीड़ में बाहर की ओर खुलती थी |
जहाँ दिल का नामोनिशान ना था,
लगता नहीं कि वहाँ कभी किसी का नाम था
उस जगह भीड़ है , वह रास्ता आम है |
डॉ नूतन गैरोला --- सितम्बर ? २०११
kisi ko kisi se koi matlab nahee
ReplyDeletesab apne liye jee rahe
आपकी गहन भावों से ओतप्रोत प्रस्तुति
ReplyDeleteकी गहराई में जाने का प्रयत्न कर रहा हूँ.
लेकिन बेहद बारीक अक्षरों से लिखी गयी
गाथा को पढ़ना आसान कहाँ.मेरा दिल निर्मल
बने तो यह स्पष्ट हो ही जायेगी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,नूतन जी.
ब्लॉग जगत में आपका साथ सुन्दर सत्संग है.
bhaut hi acchi rachna.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना,....
ReplyDeleteमन की गहनता को कहती अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletehrdy ke gahan bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne is rachna ke madhyam se .badhai .
ReplyDeleteयह गाथा है या गा व्यथा:)
ReplyDeletegatha chahe kahi bhi ho par usme bahut kuch chupa hota hai
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है !
'' तेरी गाथा तेरा नाम ''
नूतन जी बडी गहरी बात कह दी …………सच भीड मे आम रास्ता ही हर कोई चुनना चाहता है बिना दिल के।
ReplyDeleteदिल के कोने में सजा, रहा अकेला नाम।
ReplyDeleteसजा सदा देता रहे, करे नहीं आराम ।।
गंभीर भाव लिये सुंदर पेशकश.
ReplyDeleteबधाई.
बहुत सी गाथाओं का यही अंत होता है...बहुत गहन और उत्कृष्ट प्रस्तुति..
ReplyDeletehttp://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/02/links.html
ReplyDeleteदिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
विशेष भाव आम होने लगते हैं, पर कितनी पीड़ा पहुँचा जाते हैं उसके पहले..
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत दिनों से दिखी नहीं,हैं कहाँ डॉक्टर डिमरी जी.
ReplyDeleteकभी कभी ही मेरी पोस्ट पर दें कमेन्ट कर डिमरी जी.
सुंदरता से अभिव्यक्त गहन गंभीर रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई..
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteसादर
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गयी आपकी नन्ही सी रचना...
गहन अभिव्यक्ति - अति सुन्दर.
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकहते हैं रचना छप जाने पर सृजनकर्ता की नहीं रहती ....पाठकों की हो जाती है .....लेकिन क्या कोई भी पाठक उस लेखन की गहराई को या लेखक की मन:स्तिथि को अंगीकार कर पाता है ? बहुत ही सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहूत हि सुंदर
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन..
बेहतरीन रचना...