जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च-
मरती रही, मर मर जीती रही पुनः,
चलता रहा सृष्टिक्रम,
अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Sunday, February 26, 2012
अशेष लक्ष्यभेद - डॉ नूतन गैरोला
प्रत्यंचा जब खींची थी तुमने
भेदने को लक्ष्य
खिंच गयी थी डोर दीर्घकाल तक कुछ ज्यादा ही कस |
टूट गयी वह डोर
सधा था जिस पर बाण
शेष हाथ में धनुष तीर
और अनछुवा रह गया लक्ष्य |..नूतन ..७/१२/२०११ २१ :५५
meri najar mein to lakshya tak pahuchne kee koshish karna hi safalta hai... waise aapke shabdon ka jaal itna satik hai ki koi bhi ismein fanse bina nahi rah sakta...
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
हर कोई अर्जुन नहीं बन पता , प्रत्यंचा की पकड़ ढीली हो या कसी---- लक्ष्य गुम हो जाता है
ReplyDeleteडोर इतनी भी न खींची जाये की टूट जाये .... चंद पंक्तियों में गहन बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर! वास्तविकता की जांच की क्षमता न होने पर यही होता है - बल्कि, रिश्तों के मामले में तो अक्सर यही होता है।
ReplyDeleteअति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना...
ReplyDeleteNEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
अतिप्रयास में हम लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही टूट जाते हैं, सटीक बिम्ब..
ReplyDeleteक्षमता का आभास होना अति आवश्यक है - सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
meri najar mein to lakshya tak pahuchne kee koshish karna hi safalta hai... waise aapke shabdon ka jaal itna satik hai ki koi bhi ismein fanse bina nahi rah sakta...
ReplyDeleteसाधना में balancing अति आवश्यक है.
ReplyDeleteराम द्वारा शिव धनुष तोड़ने को आप किस बात का प्रतीक मानती हैं.
क्या उन्होंने जानबूझ कर तोडा या साधने में कोई कमी हुई.
bahut hi umda!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
ReplyDeleteएक बार फित कोशिश करनी होगी...
ReplyDeleteमार्गदर्शक रचना....
ReplyDeleteकुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...गहन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteलक्ष्य भेदने के लिए बहुत सावधानी और .....ध्यान चाहिए ...धैर्य भी ....
ReplyDeleteबहुत सारी बातों पर प्रकाश डाल रही है आपकी रचना ...!!
बहुत सुंदर रचना ...
very nice
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