Tuesday, February 21, 2012

तेरी गाथा तेरा नाम



  


बेहद बारीक अक्षरों से लिखी गयी थी वो गाथा
स्पष्ट कहीं  दिल के अंदर
या किसी किताब में अस्पष्ट किसी चोर पन्ने में
किसी दूसरे  नाम से
और जहाँ अक्षर दृष्टिगत थे वहाँ गाथा पर कितने ही लेप
खट्टे,  मीठे, नमकीन, कडुवे,
स्वाद बदल दिया गया|
वहाँ  गाथा मन के कमरे में नहीं
भीड़ में बाहर की ओर खुलती थी |
जहाँ दिल का नामोनिशान ना था,
लगता नहीं  कि  वहाँ  कभी किसी का  नाम था
उस जगह भीड़ है , वह रास्ता आम है |

डॉ नूतन गैरोला --- सितम्बर ? २०११ 

24 comments:

  1. kisi ko kisi se koi matlab nahee
    sab apne liye jee rahe

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  2. आपकी गहन भावों से ओतप्रोत प्रस्तुति
    की गहराई में जाने का प्रयत्न कर रहा हूँ.
    लेकिन बेहद बारीक अक्षरों से लिखी गयी
    गाथा को पढ़ना आसान कहाँ.मेरा दिल निर्मल
    बने तो यह स्पष्ट हो ही जायेगी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,नूतन जी.
    ब्लॉग जगत में आपका साथ सुन्दर सत्संग है.

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  3. मन की गहनता को कहती अच्छी प्रस्तुति

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  4. hrdy ke gahan bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne is rachna ke madhyam se .badhai .

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  5. gatha chahe kahi bhi ho par usme bahut kuch chupa hota hai

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  6. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    कल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है !
    '' तेरी गाथा तेरा नाम ''

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  7. नूतन जी बडी गहरी बात कह दी …………सच भीड मे आम रास्ता ही हर कोई चुनना चाहता है बिना दिल के।

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  8. दिल के कोने में सजा, रहा अकेला नाम।

    सजा सदा देता रहे, करे नहीं आराम ।।

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  9. गंभीर भाव लिये सुंदर पेशकश.

    बधाई.

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  10. बहुत सी गाथाओं का यही अंत होता है...बहुत गहन और उत्कृष्ट प्रस्तुति..

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  11. http://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/02/links.html
    दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

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  12. विशेष भाव आम होने लगते हैं, पर कितनी पीड़ा पहुँचा जाते हैं उसके पहले..

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  13. अच्छी अभिव्यक्ति..

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  14. बहुत दिनों से दिखी नहीं,हैं कहाँ डॉक्टर डिमरी जी.
    कभी कभी ही मेरी पोस्ट पर दें कमेन्ट कर डिमरी जी.

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  15. सुंदरता से अभिव्यक्त गहन गंभीर रचना...
    सादर बधाई..

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  16. बेहतरीन रचना।

    सादर

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  17. वाह!!!
    बहुत कुछ कह गयी आपकी नन्ही सी रचना...

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  18. गहन अभिव्यक्ति - अति सुन्दर.

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  19. गहरी अभिव्‍यक्ति।

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  20. कहते हैं रचना छप जाने पर सृजनकर्ता की नहीं रहती ....पाठकों की हो जाती है .....लेकिन क्या कोई भी पाठक उस लेखन की गहराई को या लेखक की मन:स्तिथि को अंगीकार कर पाता है ? बहुत ही सुन्दर रचना !

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  21. बहूत हि सुंदर
    अनुपम भाव संयोजन..
    बेहतरीन रचना...

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