Thursday, February 23, 2012

मन की खिड़की से - डॉ नूतन गैरोला



boy gazing out window_thumb[27]


मन की खिडकी से

जब भी

वह ताजगी से भरा चेहरा

मुझे पुकारता है......

ठिठक जाती हूँ मैं

और देखती हूँ पीछे मुङ कर

कितनी दूर हो चली हूँ मैं

सालों साल

एक लंबा अंतराल

चलती चली हूँ मैं ..

उम्र के पड़ाव

अनेक आये

कहीं रुकी नहीं मैं ..

और कितने ही पहाडों से

दरमियाँ बीच में

खंदकों से भरे

गहरे हैं फासले....

और इतनी दूरी देख

घबरा कर

उभर आती हैं पसीने की बूंदें

अनुभवों की परतों से बाहर

माथे पे झूलती सलवटों पर |

सोचती हूँ

क्या पहुँच पाउंगी उस तक वापस....

जहाँ मुझको गले लगाने

फिर से अपनाने

उतर आएगा

मन की खिडकी से

मेरा मस्त बेफिक्र बचपन|

लेकिन जानती हूँ मैं

वह अभी भी झूलता है

हिलोरे लेता है

मेरे मन के भीतर

और अक्सर मुझे दूर जाते हुवे देखा करता है

उदास मन से

मेरे मन की खिडकी से|

 

 

डॉ नूतन गैरोला … २३-०२-२०१२


16 comments:

  1. मन की खडकी से झाकों तो अनंत तक पहुच सकते है,
    बहुत बढ़िया,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,.....

    MY NEW POST...आज के नेता...

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  2. jaise jaise umr badhtee
    man kee khidke se utnee hee door tak nazar jaatee

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  3. ओह , तो आज कल अपने जन्मस्थान पर पहुँच कर बचपन की यादें ताज़ा हो गयी हैं .... बहुत सुंदर प्रस्तुति ॥मन को छूती हुई

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  4. बहुत सुंदर है यह मन की खिडकी।

    ------
    ..की-बोर्ड वाली औरतें।

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  5. बहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  6. मन की खिड़की से कितने सुन्दर दृश्य नजर आते है!...उत्तम रचना!

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  7. उस तक जाना नहीं होता ... वह अपने मीठे अंदाज में कभी किलकारियां भरते कभी ठुनकते सुबकते पीछे पीछे आता है ... बस उसकी ऊँगली थाम लो तो ज़िन्दगी के कई व्यूह खुद ब खुद टूट जाते हैं , परेशानियां तो समझदारी में है

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  8. बचपन कभी साथ नहीं छोड़ता...सुंदर कविता!

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  9. sach kaha..bachpan nahi bhulaya ja sakta...bahit sundar prastuti

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  10. खुद से ही खुद के सवाल.....में उलझे है हम सभी.....सार्थक अभिवयक्ति......

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  11. कल 25/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. मन को छूती सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद।

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  13. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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  14. कोई सीधे ही पहुँचा दे बचपन में, अनुभवों से पुनः होकर गुजरने से अच्छा कि बचपन में न जायें।

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  15. भला था कितना, अपना बचपन.....

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  16. वाह
    बहूत हि सुंदर
    सुंदर भाव संयोजन
    बेहतरीन रचना...

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