Wednesday, March 14, 2012

प्रेम जैसे ---




प्रेम

जैसे पहाड़ का सबसे ऊँचा शिखर

एक अजीब खिंचाव

पहाड़ को फ़तेह करने को एक प्रेमी मन विभोर

खड़ी अडचने,

उनको, पस्त हो हांफ हांफ कर करता पार

पहुँचता है शिखर पर |

लेकिन कठिन है ठहराव

अविश्वास, अहंकार, असहमतियों की बारिश,

शिखर पर जब बरसती है जोर से

तब पहाड़ पर होता है भूस्खलन

ऐसे में वह मन चोटी से फिसल कर लुढक जाता है

बहुत तीखी ढलानों पर

और चकनाचूर हो जाता है |

पहाड़ के नीचे बहती है

खामोश, तन्हा उदास अकेली नदी |

 


    DSC05274
      चित्र - मेरी खींची हुवी तस्वीर - गंगा नदी की ( पहाड़ में)






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प्रेम

जैसे सपनो का

न खतम होने वाला बंद गलियारा

जहां अतृप्त प्यासी रूहें भटकती हैं

और एक कुंआ होता है

उस छोर पर

सूखा हुआ

सिर्फ एक छलावा मरीचिका सा ...

 

 


  saavegreriver  

प्रेम-

जैसे पानी का समर्पण|

....बेरंग हो कर

जो रंग डाले प्रेमी

उस रंग में रंग जाए

मन को हरा हरा कर जाए |

....बिन आकार

जिस सांचे में डाले प्रेमी

उसमे ही ढल जाए

एक दूसरे की खुशियों में

खुद को जीवनरस से भरा भरा पाए |

प्रेम

जैसे पानी

बहता कलकल

वैसा पारदर्शी, वैसा निर्मल||

 


 

 

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प्रेम

जैसे एक विलायक

जिसमे

धुल जातीं हैं

घुल जाती हैं आत्माएं

हो जाती हैं एक|

दैहिकता से परे

प्रेम

जैसे विलीन होने को

परमात्मा में,

बेचैन

इच्छुक आत्मा|

  union_0708_rp…. …. ..नूतन  १४ / ३ / २०१२

20 comments:

  1. prem shabd ki abhootpoorv vyakhya ki hai aapne.aapke dwara kheenchi gayi maa ganga kee adbhut tasveer man ko bha gayee.aabhar.ये वंशवाद नहीं है क्या?

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  2. प्रेम तू एक...पर तेरे रूप अनेक!...सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  3. अनुपम भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ...आभार

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  4. प्रेम रस में पगी और ज्ञान से सजी . हम डूब उतरा रहे है .सुँदर

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  5. बेरंग की तरह प्रेम ...
    बहुत खूब उपमा दी है प्रेम को ... सच में असल प्रेम तो वही है जो दूसरे के रंग में रंग जाता है ... अपना अस्तित्व खो देता है ... गहरी रचना ...

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  6. प्रेम बिम्बों में कहाँ सिमट पाता है।

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  7. बहुत ही सुन्दर भाव ..........वाह नूतन जी प्रेम के सुन्दर स्वरुप की बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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  8. प्रेम
    जैसे विलीन होने को
    परमात्मा में,
    बेचैन
    इच्छुक आत्मा|
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण अभिव्यक्ति सुंदर रचना,...


    RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

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  9. प्रेम पर बहुत सुंदर रचनाएँ ...सभी एक से बढ़ कर एक ...

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  10. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रूप से परिभाषित किया है आपने प्रेम को...

    बहुत प्यारी रचनाएँ...

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  11. वाह ……………अति सुन्दर भाव संयोजन
    प्रेम एक अनन्त खोज
    एक अबूझ पहेली
    निराकार से साकार होता
    और फिर निराकार मे लीन होता

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  12. बहुत खूब! प्रेम को बहुत गहनता से चित्रित किया है...आभार

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  13. बहुत सुन्दर सृजन !
    आभार !

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  14. ati sundar ,prem ko kitne dhang se paribhashit kiya hai ..padhkar achchha laga

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  15. sundar manmohak chitron ke sath sundar prastuti..
    Ek baar jab joshimath gayee thi to pahadon ke beech se Ganga nadi ko dekhna bada sukun pahunch raha tha...aaj tasveer dekhkar yaad taji huyee aur man ko bahut achha laga..
    prastuti hetu aabhar!

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  16. प्रेम के विविध रंगों को चित्रों और शब्दों के माध्यम से आपने बहुत कुशलता से उकेरा है..बधाई !

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  17. सुन्दर भाव संयोजन........
    बहुत ही सुन्दर और सुनियोजित ढंग से बसाया और खुबसूरत चित्रों से सजाया गया प्रेम नगर.....
    उपरोक्त प्रस्तुति हेतु आभार.......

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  18. अमृतरस से सराबोर कर दिया है आपकी लाजबाब प्रस्तुति ने.
    अदभुत भावमय अभिव्यक्ति नयनाभिराम चित्रों
    के साथ दिल पर सुन्दर छाप छोड़ रही है.

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