सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं ... और कितने कटेंगे सर : ( खून लाल ही होता है, किसी भी मजहब, जाति का हो, स्त्री पुरुष का हो, जब बहता है तो कितनी ही पीड़ा और दर्द का सैलाब ले आता है, कितने समंदर बह उठते हैं आँखों से, और सूख जाती हैं आँखें, कितने दिल तड़प उठते है, कितने लोंग बेघर हो जातें हैं, कितनो का संसार छिन जाता है, कितनों का भविष्य अंधेरों में डूब जाता है, आखिर युद्ध, युद्ध ही होता है जिसमे इंसानों का क़त्ल होता है, बड़े स्तर पर सामूहिक क़त्ल सा, फर्क इतना है कि यह समाज में स्वीकार्य है और वैधानिक रूप से मान्य है, एक क़त्ल में अपराधी करार होते हैं दूसरे में तग्मा मिलता है ... साफ़ तौर पर यह अपनी निजता या स्वार्थ से जुड़ा नहीं, बल्कि इनसे ऊपर उठ कर अपने देश के लिए बलिदान करने जैसा है .. देशभक्ति से जुड़ा है यह प्रसंग, किन्तु सैनिकों का खून भी खून है, उनका भी घर परिवार है, वो भी बच्चे हैं अपने माँ पिता के और उनके भी बच्चे हैं ...युद्ध की भयानकता को नजरअंदाज भी करें तो भी युद्ध में जीत किसी की नहीं होती, मानवता हार जाती है जब युद्ध होते हैं| मैं या कोई भी कभी भी युद्ध का पक्षधर नहीं होगा , दोस्ती नहीं तो नीतियां या फिर कूटनीतियां लेकिन युद्ध आखिरी विकल्प है ... आप क्या सोचतें है? डॉ नूतन डिमरी गैरोला |
नीतियां,कूटनीतियां,दोस्ती,नही युद्ध ही आखिरी विकल्प है ...
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
नीतियां,कूटनीतियां,दोस्ती,नहीं युद्ध ही आखिरी विकल्प है ...
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युद्ध की जरुरत नहीं यदि मनुष्य...मनुष्य बन जाए। आपने झकझोर दिया।
ReplyDeletekash! dusmani prem me badal jaati aur ham sabhi vasudhaiv kutumbkam ki tarah rahte..........
ReplyDeleteजब शब्द समझने निष्फल हो,
ReplyDeleteबोलो विकल्प क्या बचता है।
बात आपकी सही है के युद्ध अंतिम अश्त्र होना चाहिये लेकिन कुछ युद्ध की भाषा ही समझते हैं.
ReplyDeleteलोहड़ी, मकर संक्रान्ति और माघ बिहू की शुभकामनायें.