बेगुनाही की मेरी न मुझको सजा दे, खफा मुझसे तू क्यूँ, ए जिंदगी बता दे| जिन्दा बमुश्किल चाक- ए- जिगर संग हलाहल पिला के तू कुछ तो वफ़ा दे | बहार आ न पाई, खिजां ढल गयी है, खिली भी नहीं थी कि शाख गिर गयी है| न मसल इस कदर तू कदम रख संभल के उठा के कली को अब घर को सजा दे |
वो दो दिन नहीं थे वो जीवन मेरा था रंगे बहार थी कि गुल खिल गए थे| किधर से उठा था तुफां जिल्लतों का जो बुझ के मिटा है वो चिराग-ए-यार मैं था|
चाँद बादलों में, शबे गम ढल रही है आँखों में लहू की नदिया पिघल रही है| पश्चिम में डूबा पर अब सहर हो रही है, दीदार यार दे कर तू अब नूर-ए-जहां दे| बेगुनाही की मेरी न मुझको सजा दे, खफा मुझसे तू क्यूँ, ए जिंदगी बता दे दूरी तेरी न सही जा रही है हार जाएगी मौत गर तू मुझको पनाह दे| तू मुझको पनाह दे, तू मुझको पनाह दे|
……………………… nutan ~~ … 11:57 pm 19=01= 2013 |
सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना।।।
ReplyDeleteजीवन में रमना चाहा था,
ReplyDeleteहमने बस इतना ही माँगा।
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार आदरेया ||
I stumbled while wandering and fell down here to find my self in AMRITRAS.
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
ReplyDeleteबेगुनाही की मेरी ना मुझको सजा दे.
ReplyDeleteकोमल संवेदशील अहसास और उसकी सुंदर अभिव्यक्ति.
लाजवाब.....दिल के तूफान को अक्षरों से सजा दिया।
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
उम्दा पेशकारी ......
ReplyDeleteachchi prastuti.
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपको गणतंत्र दिवस पर बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें.