Friday, June 28, 2013

तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर

उत्तराखंड में अपने पीडितों के दर्द को देख दिल रो उठता है बार बार
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 wound-graham-dean


तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर ....

मेरी परछाइयाँ

जब

डूब गयी पानी मे

और बेअदब

चिल्लाते हुए बादल

फिर उमड़ रहे है ....

परछाइयां

सतहों से उठ उठ मांगती हैं

हिसाब अपना

लेना देना ...……………….

अभी हजारों जीवन बन् चुके है कर्ज तुझ पे

माटी से रूह खंडित की है तुने

चलती फिरती वो परछाइयां

किधर खो गयी है

मिट्टी पानी हो गयी हैं ...……. ..

उन परछाइयों को छूना चाहती हूँ अब भी

और इस प्रयास में

दिल पर इक गहरा जख्म टीस करता है

लहू धार धार बिखरने लगता है .............. ~nutan~


12 comments:

  1. पीड़ा और दर्द को बयां करती सुंदर पंक्तिया

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  2. ये जख्म सालों तक रिसते रहेंगे.

    रामराम.

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  3. बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

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  4. लहू धार धार बिखरने लगता है....

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काँच की बरनी और दो कप चाय - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. मन के मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  7. हर दृश्य, हर शब्द मन आहत कर जाता है।

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  8. मर्मस्पर्शी रचना , नूतन जी

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  9. dard ko bhi khoobsurati se dhala ja sakta hai ..ye yaha dekha ..ek ek shabd dard bayan karta hai ..

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  10. बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
    आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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