वह, एक सितारा था, शहर के ऊपर घने बादलों के पार चाँद की दुनियां से भी बहुत दूर ... और वह औरत उसकी रौशनी में अंधेरों को मिटाती अकेले दुनियां के सफ़र में .. लोगो के लिए उसकी दुनियां चार दिवारी थी और खुद वह उस दीवार को कभी नहीं तोड़ पायी थी, न ही उस दरवाजे के ताले की चाभी उसके पास थी और दरवाजा भी ऐसा की जिसके पलड़े कभी भी बाहर की ओर नहीं खुलते थे ............. वह रात को घर की छत पर लेट अपने टुकड़े के आकाश पर बिछी काली चुनर पर, किरणों से लटके सितारे देखती और देखती के वह एक सितारा अपेक्षित सा मुंह चुरा रहा होता वह मुस्कुरा जाती कहती कितना पगला है तू, देख न छत पर तेरी ही तो रौशनी है जिसके आने पर वह गुनगुनाती है, उसको बताना चाहती कि उसके आँखों में बसी रौशनी उस सितारे के लिए है... लेकिन उसके मन की आवाज वहां तक न पहुँचती .. और अँधेरे से निकलकर चार जोड़ी चमकती आँखे चमगादड़ों की, उसे डरा जाती, वह दौड़ती हुई छत की सीडियों से उतर कर फिर चार दीवारी के भीतर अपने अंधेरों में खो जाती .................. कितना अजनबी था यह तारा, पर कितना ख़ास हो गया था उसके लिए, इन चंद दिनों में पश्चिम का वह सितारा दूर आकाशगंगा के किनारे मद्दिम सा यदाकदा चमकता सा .. वह लड़की आँखें बंद करती और उसकी दुनियां तक सैर कर आती और समझ न पाती कि आखिर उस दुनियां में क्या है जो उसे लुभाता है .. यकायक वह फिर उठती और उठती हर भय से ऊपर और उस अनजान सितारे की रेशमी किरणों को पकड़ वह सितारे की और फिसलना चाहती है, शायद वह आज बताना चाहती है कि वह कितना अहम है उसके लिए, लेकिन जब तक वह उस सितारे तक पहुँच पाती, धुप खिल जाती और वह सितारा रौशनी में डूब कर खो जाता, उस जगह दुनियां की आवाजाही और भीड़ का काफिला सड़कों में फ़ैल जाता है, सितारा दिन के उजाले में डूब जाता, उदास मन से वह चूल्हे पर बर्तन रख देती है क्यूंकि दिन पेट का होता है और रात भूख की| सूरज के साथ उसके आँगन में फूल मुस्कुरा उठते हैं और ये फूल उसे दिन भर सितारे की याद दिलाते रहते हैं और उसका जीना और भी मुश्किल कर देते हैं ..................... उसकी आँखों के कोनो पर आंसू होते पर मजबूर पलके उनको भी अन्दर कैद कर लेती क्यूंकि उस की तरह उसके आंसू भी कैद होने के लिए बने हैं, ऐसे दरवाजों के भीतर जहाँ से बाहर आने की मनाही है .. वह उदास है .. कब शाम ढलेगी .... कब वह दूर अंधेरों में चमकते अपने सितारे को देखेगी .. बहुत देखी थी दुनियां उसने .. लोग बात बात पर छाती पर खंजर चलाने से भी कतराते नहीं थे, पीठ तो कबकी छलनी हो चुकी थी और यही वजह थी की उसे उन दीवारों के अन्दर कैद कर लिया गया था उसकी सलामती की दुहाई थी, बाहर निकला जाता तो उसके साथ सुरक्षा कवच बन कुछ चमगादड़ साथ चलते, जिनकी आँखें उसकी सांस पर भी नजर रखतीं मौका मिले तो वो हीं न कहीं उसे कच्चा चबा जाएँ .. जिनके बीच वह खुले में भी कैद हो चुकी है ............ पर आज उसे बहुत इंतजारी है सितारे की, आँखें आसमान से हटती नहीं तीन दिन हो चुके हैं, आसमान में बादल छाये हुए है, आसमान खुलता नहीं .. आँखें रो रो कर सूज गयी हैं .. आज चूल्हें पर सिर्फ बर्तन चढ़ा है, खाना उसने नहीं बनाया ... उसपर दया आ गयी उसके बाहर की औरत को, उसने आज उसके अन्दर की औरत को खुल कर रोने दिया है और खुद खाना बनाती रही है बाहर से ...आज बाहर की औरत घर की जिम्मेदारियां उठाती रही है जबकि अन्दर की औरत रोती रही है ... आज जल्दी है उसे छत पर जाने की, तीन दिन हुए सितारा बादलों के पीछे छिपा रह गया ....... आज हवाएं तेज चली थी शायद उसका साथ दे रहीं थी, शाम तक आसमान भी साफ़ हो गया था .. अँधेरा छाने लगा था ..रात्री भोजन के बाद जल्दी जल्दी उसने बर्तनों को खंगाला और आड़े तिरछे अलमारी में पलट कर छत की ओर दौड़ी .. आज आकाश पहले से भी साफ़ था .. आज वह सितारे को आवाज लगाएगी, बताएगी कि वह उसको प्यार करती है, आज इस साफ़ आसमान में उसकी आवाज वहां तक पहुँच सकती है .. और वह कहेगी सितारे से इन डरावनी आँखों से दूर उसे अपने पास उड़ा ले चल .. अपनी किरणों के साथ ............. वह छत पर पहुंची और जैसे ही आकाश की ओर देखा उसे एक तारा टूट कर गिरता नजर आया .. उसने देर नहीं की और कह दिया टूटते तारे से कि उसको उसके सितारे का साथ दे .. सुना था उसने भी की टूटते तारे से माँगा वरदान खाली नहीं जाता .. सो उसने जल्दी से आँख मूंदी और मांग लिया तारे का साथ .. और कितना खुश हुई वो, आज बताएगी अपने सितारे को कि अब उससे उसको कोई अलग नहीं कर सकता, नजर भर भर कर उसने आकाश में देखा .. एकटक आकाश की ओर नजरें गाढ़ दी .. पश्चिम की ओर आकाश गंगा के किनारे .. लेकिन वह सितारा अपनी जगह कहीं नहीं था, वह जगह खाली थी, निस्तेज थी, सुनसान थी ... हाय! ये क्या हुआ ? तीन दिन में ही उसको देखे बिना सितारा इतना टूटा, इतना टूटा कि टूट कर अपना सब कुछ खो कर, खुद ही मिलने चल पड़ा उस जमीं पर जहाँ वह औरत रहती थी, ... और वह अभागी समझ न सकी जाने वाला कोई नहीं उसका अपना सितारा था नहीं तो वह रोक लेती आवाज लगा लेती या सारे बन्धनों को तोड़ कर उस दिशा की और उड़ लेती जिधर समुद्र था, जमीन थी और जिधर वह तारा गिरा था ............. और जमीन के उस किनारे पर जहाँ समुद्र था, सितारा वहां डूब गया सुना है कि वहां समुद्र में सितारे जैसी मछलियाँ रहा करती हैं .. और वे आँखें, वो दो आँखें जो आकाश की ओर अपलक देख रही थी, देखते देखते हुए पथरा गयी, कहतें हैं कि आज भी पत्थरों की उन पुतलियों में सितारे की चमक है ... .. ......... नूतन १८ / ०१ / २०१३ .. १२ : ३३ रात्री . |