सुनो ! तुम जानते नहीं आज भी जब कभी मैं वो किताब उठाती हूँ जिंदगी की अलमारी में सहेजी हुई ४५ गुणा ३६५ दिन की कहानियों में से, महज दो दिन की कहानी..... अनकही, अनसुनी, अनदेखी अस्पष्ट और अस्वीकृत......... पर यकीन नहीं होता कि ये तमाम स्वीकृतियों से भारी थी गवाह थी वो आँखें जिसने पढ़ी थी कहानी और सबूत में अनमोल मोतियों से भीगाती रही थी किताब के पन्ने हर बार शब्द दर शब्द ...... तब याद आया कहा कि कभी हम तमाम जिंदगी, जिंदगी से रूबरू नहीं होते कभी हम एक पल में ही पूरी जिंदगी को जी जाते है और दुःख कि उस एक पल को भी समेट कर नहीं रख पाते हैं |………….. नूतन |
सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा।
ReplyDeleteकोमल अह्सास्युक्त भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteचाहो तो दो पल में जी लो..या फिर सारी उम्र गंवा दो..
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने ,,,,सार्थक अभिव्यक्ति ,,,
ReplyDeleterecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
संबंधों की सजगता और गहनता से जिया जीवन कितना कुछ दे जाता है।
ReplyDeleteकभी हम एक पल में ही पूरी जिंदगी जी जाते हैं...
ReplyDeleteगंभीर रचना एक सुखद अहसास. बहुत बधाई नूतन जी इस प्रस्तुति के लिये.
Rachna ji aapka dil se shukriya
Deleteसच कहा नूतन जी कभी कभी लगता है हमने पूरी जिंदगी जी ली हर पल जी लिया कभी लगता है कुछ पल हमसे अभी भी अछूते हैं बहुत सुंदर गंभीर रचना कल के चर्चा मंच पर देखियेगा
ReplyDeletedhanyvaad Rajesh ji...
Deleteअंदाज़ बहुत ही उम्दा और अलग है.. !
ReplyDeleteसच....तमाम उम्र एक पल पर भारी पड़ जाते हैं कई बार...
ReplyDeleteये मन कि कशमकश चलती रहती है ओर जीवन यूं ही गुज़र जाता है ...
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