Monday, January 14, 2013

नाविक तुम कहाँ ?

 
nutan -thailand - potaung beech


लहरों सुनो!

न इठलाओ तुम

नहीं रखूंगी कदम उस ओर

जहां तुम पांवों पर मचला करती हो|

निमंत्रण देती हो डूब जाने को

मेरी नियति नहीं कि मैं डूब जाऊं

चाहा डूबना जब भी

पत्थर से जा टकराउ |

मेरे रास्ते के पत्थर अहिल्या बन कर

सर झुकायेंगे नहीं

चोट गहरी दे जायेंगे

पत्थर फिर भी न शर्मायेंगे |

इसलिए लहरों तुम न इतराओ

न मुझको और लुभाओ |

एक अदद नाव मुझे भी चाहिए

डूबने के लिए नहीं

पार पाने के लिए|

लगता है वह रेत के इस बियाबान में

कहीं फंसी पड़ी है..

नाविक तुम कहाँ हो? …. ……नूतन

 

तस्वीर – थाईलेंड .पोटंग बीच

11 comments:

  1. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  2. ्बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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  3. गहन भाव .... सुंदर प्रस्तुति

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  4. अर्थ और विचार की सशक्त अभिव्यक्ति .सुन्दर भाव और संकल्पों की कविता .

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  5. नाव मिल जाए बस...फिर कश्ती को पार तो खुद ही लगा लेने की दम रखती है नारी....
    सुन्दर रचना नूतन जी...
    मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    अनु

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  6. सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  7. लहरों का मदमाता ऊर्जस्वित अस्तित्व कुछ और ऊर्जा दे जाता है, जूझने के लिये, हर बार।

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  8. सुंदर गहन भावभिव्यक्ति....

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  9. wahhh...Bahut umda Rachna ...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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