Thursday, January 31, 2013

कहानी दो दिन की –डॉ नूतन गैरोला


 
             Edward-Rober-Hughes-Idel-Tears
 

सुनो !

तुम जानते नहीं

आज भी

जब कभी मैं

वो किताब उठाती हूँ

जिंदगी की अलमारी में सहेजी हुई

४५ गुणा ३६५ दिन की कहानियों में से,

महज दो दिन की कहानी.....

अनकही, अनसुनी, अनदेखी

अस्पष्ट और अस्वीकृत.........

पर यकीन नहीं होता

कि ये तमाम स्वीकृतियों से भारी थी

गवाह थी वो आँखें

जिसने पढ़ी थी कहानी

और सबूत में

अनमोल मोतियों से भीगाती रही थी

किताब के पन्ने

हर बार

शब्द दर शब्द ......

तब याद आया कहा

कि कभी हम तमाम जिंदगी, जिंदगी से रूबरू नहीं होते

कभी हम एक पल में ही पूरी जिंदगी को जी जाते है

और दुःख कि उस एक पल को भी समेट कर नहीं रख पाते हैं |………….. नूतन

14 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा।

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  2. कोमल अह्सास्युक्त भावपूर्ण रचना...

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  3. चाहो तो दो पल में जी लो..या फिर सारी उम्र गंवा दो..

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  4. बिलकुल सच कहा आपने ,,,,सार्थक अभिव्यक्ति ,,,

    recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

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  5. संबंधों की सजगता और गहनता से जिया जीवन कितना कुछ दे जाता है।

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  6. कभी हम एक पल में ही पूरी जिंदगी जी जाते हैं...

    गंभीर रचना एक सुखद अहसास. बहुत बधाई नूतन जी इस प्रस्तुति के लिये.

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  7. सच कहा नूतन जी कभी कभी लगता है हमने पूरी जिंदगी जी ली हर पल जी लिया कभी लगता है कुछ पल हमसे अभी भी अछूते हैं बहुत सुंदर गंभीर रचना कल के चर्चा मंच पर देखियेगा

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  8. अंदाज़ बहुत ही उम्दा और अलग है.. !

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  9. सच....तमाम उम्र एक पल पर भारी पड़ जाते हैं कई बार...

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  10. ये मन कि कशमकश चलती रहती है ओर जीवन यूं ही गुज़र जाता है ...

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